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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 August-2018 ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ ॥४४॥ ॥४५॥ SHRUTSAGAR अग्नि द्वीपा उदधी दिसी ए, दीसइं पवन थणि ऋद्धिं तिसी ए, नारक जिम शरीर ए, अवगाहना छइ बहु फेर ए हाथ सात उक्कोस ए, भवधारणी अंगुल अंश रे, जहन्न असंख संख्यात ए, उत्तर-वैक्रिय हिविं वात ए उक्कोसुंजोयण लाख ए, संठाण चउरंस सम भाख ए, कोह माण माय लोभ ए, सदा च्यारि कषायनो वेध ए संन्या सरिखा नारकी ए, एक तेजोलेश्या तेहथी ए, अधिकी इंद्रीय पंच ए, तिम समुदधातु संच ए वेदना बीजो कषाय ए, मारणांती वैक्रिय काय ए. तेजस सन्नी असन्नीया ए, एक दीर्घकालिकी वन्नीया ए पर्यापति हविं पंच ए, मन भाषा एक ज संच ए, समकित मिच्छादिट्ठीआ ए, मीस पुरुषवेद वली इत्थीआ° ए चक्खु अचक्खु दंसणी ए, बीजो अवधि कहइं इम केवली ए, मति श्रुत अवधि तीय नाण ए, विपरीति ते हवइं अनाण ए मण वयण काम तिय जोग ए, नारक तिम लहइं उवओग ए, मणवंछिय आहार ए, दिसि सवि पुद्गल-संभार ए मणुय तिरिय उतपात ए, आऊखं सुणह व्याख्यात ए, सहस दस वरस जहन्न ए, एक सागर अधिक प्रधान ए एह सामान्य वखाणिओ ए, हिविं कहुं जो जिम जाणिओ ए, एक सागर चमरिंदु ए, झाझेरुं एक बलिंदु ए तिन्नि पल्योपम साढ२ ए, देवी दाहिणि दिसिं गाढ ए, उत्तर च्यारि साढां सही ए, पल्योपम असुरूदेवी लही ए दाहिणि उत्तर जूजूआ ए, पल्योपम दोढ वि किंचूना ए, नव निकायना देव ए, देवीनो सुणह निखेव ए आध दाहिणि उत्तर देसुणुं ए, पल्योपम भोगवई ते ऊणुं ए, मणुअ तिरियगति ऊपजइं [ए], निज कीधई करमई नीपजइं ए ॥४६॥ ॥४७॥ ॥४८॥ ॥४९॥ ॥५०॥ ॥५१॥ ॥५२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525337
Book TitleShrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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