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August-2018
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SHRUTSAGAR पहिलो मिश्र वखाणिउ(ओ) ए, पछइ ऊदारिक जाणिओ ए, पाणीअ थिवुग आकार ए, संठाण छई भिन्न प्रकार ए सात सहस्र वर्षायु ए, उक्कोसो ते कहीवायु ए, तेउ काय इम उदिसिउ५ ए, संठाण सूची अग्रई जिसिउ ए
॥६७॥ कृष्ण नील कापोत ए, लेश्या तिनि पाप उद्योत ए, मणुय तिरिय उतपात ए, बहु जीव तणो संघात ए तिन्नि अहोरत(त्त) आऊखुं ए, थोडं ते पुढवी सारिखं ए, दंडक नव मांहिं गति करइ ए, देव नारक मनुष्य न अवतरइं ए आगति दस तिहां अटकली ए, देव नारक आगति सवि टली ए, चवन तणी परि तिम कही ए, गति आगति हुंती ते लही ए वाउकाय सह फेर ए, एक वैक्रिय तनु अधिकेर ए, ध्वजाकार संठाण ए, चउ समुदघातनो ठाण ए
॥७९॥ वैक्रिय अधिको ते थकी ए, पंच योग लेवा गति तिम कही ए, वर्ष सहस्र तिन आऊ ए, आगतिनो सरिसो भाव ए
॥७२॥ पंचम वणसई काय ए, पुढवी जिम ते कहवाय ए, नाणा-विधि संठाण ए, आउ वरस सहस दस माण ए, जोयण सहस उक्कोस ए, देह ऊंचो एह विसेस ए, थावर-द्वार पूरा थयां ए, विगलिंदिय बोलुं जिम लह्यां ए
॥ सफल संसार बहु ए गणुं-ए ढाल ॥ सुणह बेंदिया तिन्नि शरीरगा, बार जोयण मोटा देह उको(क्को)सगा९, छेवठ्ठउ संघयण संठाण हुंडया, काय रसणिंदिया दुन्नि तिहां इंदिया ॥७५।। तिनि(न्नि) समुघाय हुइ सदा असन्नीया, सीत आतप भई सुख ग्रहण वन्नीया, हेव(उ)उवएसकी सन्ना जिनवर कहइं, रसण-वसि कायना घणा दुख ते सहइं ॥७६॥ वेद नपुंसक पंच पज्जत्तिया, थावर पंचथी वचनि अधिका थया, दिट्ठि समा मिच्छा मीस त्रीजी भली, दुन्नि अन्नाण मति सू(श्रु)ति पुहती रली२३ ॥७७॥
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