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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 19 देवी पल्योपम आघ ए, थोडुं ते सुर जिम लाध ए, बीजो सहूअ विचार ए, भवनपती (ति) जेम प्रकार ए चंद्र पल्योपम एक ए, लाख वरस अधिक इम रेक ए, सूर सहस एक जाणिवउ ए, देवीनुं आध वखाणवउ ए पूरुं पल्योपम ग्रह तणुं ए, नखि (ख) त्रनं आधुं तिम भणिओ (पुं) ए. तारा चउथो भाग ए, अधिलो" ते देवि विभाग ए चंद्र सूर ग्रह रिषि तणुं ए, पलिय चउथो भाग नवि अति घणुं ए, पलिअ (य)नो आठमो अंस ए, तारा- देवि ए जहन्न विसेस ए लेशा तेजो एक ए, एकादस जोग विवेक ए, कहिया रहिया जे सेष ए, भवनाधिपति मिली एक ए ॥ ढाल कहउं विमाणिय दंडक, जिहां छई बहु सुख साधक, तिन्नि सरीरनो योग, वैक्रिय उत्तम भोग सात हाथ देहमान, सोहम बीजुं ईसान, त्रीजइ चउथइ छह हाथ, पंचमि पंच छट्ठओ साथ सातमि आठमि च्यार, शुक्र कहिओ सहसार, आगलि चिहुं हाथ तिन्नि, नव ग्रैवेयक ए दुन्नि पंच अनुत्तर देवा, एक हाथ देह लेवा, सभावि” एह ज तनु भाख, उत्तर पूरुं ए लाख नव ग्रैवेयक अणुत्तर, नवि बोल्युं तिहां उत्तर, आउखुं दुन्नि सागर, पहिला कल्पना जे सुर बीजइ छइ अतिरेक, जहन पलिय एक छेद (क), सनतकुमार माहि(हिं)[द्र]इं, सात सागर आऊ हइं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचम कल्प ब्रह्म नाम, दस सागर आउ ठाम, लांतिक चउदस सागर, शुक्र सतत्त) र सुखआगर * ११३ नं की गाथाक्रम आववानो रही गयो छे. For Private and Personal Use Only August-2018 ॥१०८॥ ॥१०९॥ ॥११०॥ ॥१११॥ ॥११२।।* ॥११४॥ ॥११५॥ ॥११६॥ ॥११७॥ ॥११८॥ ॥११९॥ ॥१२०॥
SR No.525337
Book TitleShrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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