Book Title: Shrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
मनयोगइं दीर्घ जाणइं, सन्नी वीर वखाणइं, मन पाखइं ते असन्नी, नारक मांहिं हुई दुन्नी पंच पर्यापति दीठी, सम्यग मिश्र मिथ्यादृष्टी, दंसण चक्खु अक्खु, अवधि कहइं जिण दक्खु १३
नाणा तिन्नि अन्नाणा, दरसण तिन्नि पहाणा नव संख्या उपयोग, एकादश तिहां योग वैक्रिय वैक्रियमीस, कारमणा काय ईस, मन वचनइं च्यार च्यार, सर्व मिली थ्या" इग्यार दिसि सघली लई आहार, लेतां पामहं न पार, मणुअ तिरिय तिहां आवइं, आऊखुं घणुं पावई रतनप्रभा दस सहस, वरस कहिउं एह रहस७, उक्कोसु एक सागर, पुरूं दुःखनुं आगर तिन्नि उक्कोसा एक जहन, बीजी बहु दुःख दहन, तिन्नि थोडुं सात गु(गि)रूअं, त्रीजी अति दुःख विरूअं
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सागर दस छइं ए मांन, चउथई नरकइं प्रधांन, सात थकी नहीं हीणउ, सतरइं पंचमी जाण [ उ ]
,
जहन कहि दस सागर, छट्ठी बावीस दुह-भर, मघा इसुं छइं नाम, पापी जीवनो ठाम माधवती थई सात, सागर तेत्रीस वात, चवी मणुय तिरि थाई, गति पणि तेह मांहि जाइं आगति एह ज दंडक, मणुअ तिरिय थाइं नारक, मन वचनइं दुखभोग, त्रीजो कायनो योग
॥ ढाल ॥
भवनपति दस दंडक ए, बहु पुण्य तणा छई थानक ए, असुरा नागकुमार ए, सुवन्ना विद्युत सार ए
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अगस्त २०१८
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