Book Title: Shrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 20 आघो(घु) एकेकु वाधई, उपरि त्रेवीस लाभ (ध) इं, हिठलि जे छइ उक्कोस, ऊपरि जहन्न न दोस विजय उक्को तेत्रीस, जहन कहिओ एकत्रीस, सव्वट्ठ सिद्धइं तेत्रीस, जहन नहीं लवलेस ॥ ढाल ॥ सोहमि ईसानि देवलोकि देवी उतपात, परिग्रहीतनो पलिय सात नव आऊख वात, अपरिग्रही पंचास पलिय पंचावन गुरूअं, जहन पलिय एक अधिक वली ते हियडइ धरूअं लेश्या तेजो पढम दुगे ऊपरि त्रिहुं पदम, लांतक मडी(हिं?) सुकल एक जिहां रूडा सदम४२, सन्ना दस संठाण एक समचऊरंस सर्व, चउ कसाय बहु लोभवंत छइ ऋद्धिनो गर्व इंद्री नाण अनाण योग उपयोग ज दिठी, गेविज्जा लगइं सरिस कहिया जाइ मिच्छादिट्ठी, समुदघात हुइ पंच संच बारह देवलोक, पंच पर्यापति कही सही भाषा मन एक दुन्नि वेद स्त्री पुरुष उदय सोहम इसानई, उपरि बोलिओ पुरुषवेद इम गणधर मानई, सोहम इसान देवलोक दंडक गति पंच, पुढवी पाणी तिरिय मणुय वनसपती (ति) संच मणुय तिरियगति दुन्नि लहइं आठम सुर देवा, उपरिला एक मणुय गती(ति) नवमाथी लेवा, तिरिय जाइं सहसार लगइं आगति दुन्नि जाणी, आठमआ(मां)थी एक मनुष्य इम वीरि वखाणी For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगस्त २०१८ ॥१२१॥ ॥१२२॥ ॥१२३॥ ॥१२४॥ ॥१२५॥ ॥१२६॥ ॥१२७॥

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