________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुजराती भाषासाहित्यमां जैन रासाए अने कविताए लीधेलुं प्रथम स्थ
गांधी वल्लभदास त्रीभोवनदास
अनेक जैन कवि-महात्माओए अनेक रासाओ लखेला छे. गद्यमां कवितामां लखायेला अनेक महापुरूषोना चरित्रोना- कथारूप ग्रंथोने मुख्यत्वे रास एवं नाम आपेलुं होय छे. आवा रासाना ग्रंथोमां जुदी जुदी नीति अने धर्मनी वातो समजाववा माटे उन्नत आत्माओना जीवन चरित्रो आपवामां आवेलां होय छे.
वैष्णवधर्ममां पण केटलाक रासो ते धर्मना-महात्माओए बनावेला छे, परंतु जैन कविना बनावेला रासो तरफ दृष्टि करतां तेमां जे नवरस - युक्त वर्णनो आपेल छे तेवा तेमां नथी एम जणाय छे. जैन रासोमा केटलेक स्थळे तो ते रस अने अलंकारथी छलकाई जाय छे एटलुंज नहि, परंतु रसना आलंबन, उद्दीपन, विभाव वगेरे साधनोनो ज्यां जेवो घटे तेवो उपयोग करी ए वर्णनो वांचवामां आहलाद थाय तेवां रसभरित कर्यां छे. तेज आवी कृतिने जैन कवियोए रास एवं नाम आपेल छे.
आवा रासोमांथी जेम केटलेक अंशे जैन इतिहास विभाग देखाय छे तेम जुनी गुजराती भाषा ते समये केवी हती, कया सैकामां शुं फेरफार थया तेनुं पण भान थाय छे. वळी जैन साहित्य शब्दनो खरो अर्थ पण तेमां सार्थक थाय छे, ते पण जरूरी आतवाळु छे.
जैन रासोनी कविता हालना कवियोनी पेठे वृत, के छंदमां लखवामां आवेल नथी, परंतु अमुक राग अने तालसहित गवाय अने तेमां कोइ राग रागणीनी छाया आवे एवी देशीयो, ढाळो, गरबीओ विगेरेमां रचायेल छे.
कवि प्रेमानंदे ज्यारे कडवां अने दयारामभाइए मीठां एम पोतानी कविताना मथाळे लख्युं छे, त्यारे जैन कविओए देशीओनुं नाम आपी उपर ढाळ पहेली, बीजी एम लखेल छे, अने कवि प्रेमानंदनी कवितामां जेम वलण आवे छे तेम जैनकवि रचित रासाओमां ढाळनी पूर्वे दुहा, दोहरा के सोरठा दोहरा आपेल होय छे.
जैन कवि विरचित रासाओमां मंगळाचरणमां देव, गुरु ने सरस्वती देवीनी स्तुति करेली होय छे अने कया पुरूष माटे अने धर्मना कया स्वरूप उपर रास लख्यो छे ते जाणवामां आवे छे. दरेक रासमां छेवटे प्रशस्ति रचनार महा पुरूषनुं नाम, रचवानो समय, स्थळ, गाम, संवत, मास, वार विगेरे तेमज पोताना गुरूनी परंपरा पेढीनुं नाम
For Private and Personal Use Only