Book Title: Shrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
August-2018
21 ॥ राग आसाउरी ॥
॥१३०॥
श्री सुधर्म कहइं जंबू सुणुं, ए जीव भम्युं इम अति घj, अति घणुं तेह तणो पार न पा[म]इ ए
॥१२८॥ इम चउवीस दंडक करी, अनंत अनंती देह धरी, देह धरी थिर थई नही जिन कही ए
॥१२९॥ सागर जाइ अनंत ए, निगोद मांहिं वसंत ए, जंत एणी परि रलई संसार मांही(हिं) ए जिन आन्या अंगीकरई, समकित सूधुं आदरइं, आदरइं तेह तरई संसारथी ए
॥१३१॥ चंद्रगच्छि उद्योतकरू, वइरी शाखा मनोहरू, मनोहरू श्री आणंदविमलसूरीश्वरू ए
॥१३२॥ श्री विजयदानसूरिंद ए, दीठई हुई आणंद ए, आणंद ए साथई चरणकमल नमुंए
॥१३३॥ श्रीपति रिषी पंडित मुनि, हुं(दु)समकालि ध(धि)नु धिनु, [धिनु] धिनु रत्नत्रयस्युं सोभता ए
॥१३४॥ पंडित जग रिषी ऊचरई, संवत सोल त्री(ती)डोत्तरइं (१६०३), त्री(ती)डोत्तरइं विचारमंजरी ए रची ए
॥१३५॥ एह भणीनइ जे सद्दहइ, रत्नत्रय जो ते लहइं, ते लहइं अविचल पदवी सिद्धनी ए
॥१३६॥ ॥ इति श्रीविचार मंजरी स्तवनं संपूर्णः ॥ छ॥ गणि मतिविमल लखावीतं ॥ मंगलमवस्यं ॥ छ ॥ भद्रम् ॥ छ ॥
शब्दकोश- १. वैक्रिय, २. कार्मण, ३. ?, ४. हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा, ५. दुःख, ६. लूटनारा, ७. इच्छा, ८.?, ९. औदारिक, १०. समुर्छिम, ११. असमुर्छिम, १२. क्षोभ, १३. दक्ष, १४. प्रधान, १५. थया, १६. लेवं, १७. रहस्य, १८. स्तनित, १९. तेवी, २०. स्त्री, २१. सार्ध-अर्ध सहित, २२. नपुंसक, २३. त्रण, २४. परपोटो, २५. उपदेश्यु, २६. विचारी, २७.?, २८. बे इंद्रियवाळा, २९. उत्कृष्ट, ३०. समुद्धात, ३१. जिह्वाने वश थई, ३२. श्रुतज्ञान, ३३. आनंद, ३४. सहजपणे, ३५. औदारिक, ३६. सत्यासत्य भाषायोग, ३७. द्वार, ३८. ?, ३९. जेवा (?), ४०. नीचेनो, ४१. स्वाभाविक, ४२. आवास.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36