Book Title: Shrutsagar 2018 08 Volume 05 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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अगस्त-२०१८ दृष्टि तिन्नि दरसण वलि नाण, तिनि तिनि क्रमि धरइं पहाण, तिम अनाण तिय जोगपयोग, ति नव संख्या सरिखो भोग सर्व दिसीनो ल्यइ आहार, चिहुं गति ऊपजवा व्यवहार, जलचर जीवइं पूर्वकोडि, तिन्नि पल्योपम थलचर जोडि पलिय असंखभाग खेचरा, कोडिपूर्व उरपरि भुजपरा, चवन च्यारि गति तिम उतपात, गति आगति चउवीस विख्यात प्राण धरई दस तेरह योग, पनर मांहिला दुनि वियोग, आहारक टाली ते पंच, तु मनि वचनिं हुई संच मनुष्य मांहिं हुइ पंच शरीर, ऊंचा गाऊ तिन्नि ज धीर, तिरि जिम संघयण संठाण, इंद्रिय पंच कामना बाण
॥१००॥ लेश्या सन्ना सकल कसाय, पर्यापति छह प्राण अपाय, मणुअ तिरिय गर्भज सारिसा, बीजा भेद जूजूआ दिस्या
॥१०१॥ समुदघात वेदना कषाय, मरणांतिकी वैक्रिय काय, तेजस आहारक केवली, मनुष्य मांहिं पहुंचइ रली
॥१०२॥ सन्नि असन्नि सघला वेद, दिट्ठी ति दरसणनो भेद, चक्खु अचक्खु अवधि केवला, दंसण नाण पंच मोकला
॥१०३॥ योग पनर बारह उवयोग, आहारइं छह दिसि नवि योग, गति सघली आगति बावीस, सिद्धि तणी गति अधिक जगीस ॥१०४॥ तिन पल्योपम जे युगलीया, आऊखइ उक्कोसा मलिया, पूर्व कोडि एक कर्मभूमि, जहन ज अंतर्मुहूर्त सीमि
॥१०५॥ सत्तम पुढवी नारकी, तेउ वाउ दु जीह्वा (?) पातकी, असंख आउखई मणुअ तिरी, मणुअ मांहिं नवि आवइ मरी ॥१०६॥
॥ ढाल॥ व्यंतर सोल निकाय ए, बत्रीस ते इंद्र कहवाय ए, सहस दस वरस जहन्न ट्ठिती ए, एक पलिय उको(क्को)सो सुरपती ए ॥१०७।।
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