Book Title: Shrutsagar 2017 07 Volume 04 Issue 02 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कक्कावलि (गतांकथी आगळ...) आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी नीच उंचनो न्याय जुबाने, जूठ सत्य आचार; नीचा ऊंचां कुळथी माने, ते जगनो व्यवहार. सुणजो०॥२६॥ प्रेमी प्रेमी शुं कहो छो, प्रेम पछी छे दुःख; सुख वर्ते छे प्रेमी दिलमां, भागे सघळी भूख. सुणजो०॥२७॥ पामर पामर शं कहो छो, पामरना शिरदार; आशा दासीना जे वशमां, ते पामर नरनार. सुणजो०॥२८॥ पंडित पंडित शुं कहो छो, पंडित परखे सार; परभावे रमतो जे रहेवे, फोकट तस अवतार. सुणजो०॥२९॥ पाजी पाजी शुं कहो छो, पाजी पोते पेख; अंतर गुण- दान करे नहीं, साचो पाजी लेख. सुणजो०॥३०॥ फूलण फूलण शुं कहो छो, मन फूले फूलाय; फूले नहि जेनुं मन फंदे, फूलण नहीं कहेवाय. सुणजो०॥३१॥ बळीयो बळीयो शुं कहो छो, बळीआ गया मशाण; रावण पांडव कौरव योद्धा, रह्यां नहीं निशान. सुणजो०॥३२॥ मँडो भूडो शुं कहो छो, भूल्या ते तो भंड; प्रभुभजनमां भाव न वर्ते, ते भव जलधि झंड. सुणजो०॥३३॥ भूल्यो भूल्यो शुं कहो छो, भूल्या भणीने वेद; ज्ञानी ध्यानी तपी जपीने, माया आपे खेद.. सुणजो०॥३४॥ भटक्या भटक्या शं कहो छो, भटके रणनं रोझ; भटक्या नहीं ते जगमां जोगी, कीधी आतम खोज. सुणजो०॥३५॥ भोळा भोळा शुं कहो छो, भोळा जन भरमाय; परस्वभावे जे जन रमता, भोळा तेह गणाय. सुणजो०॥३६॥ याचक याचक शुं कहो छो, याचक ईंद्र गणाय; परपुद्गल भीखनी आशामां, सहु दुनिया भटकाय. सुणजो०॥३७॥ याचक साचा आतमधनने, याचे तेह गणाय; ज्ञानी ध्यानी योगी साधु, धन धन याचक राय. सुणजो०॥३८॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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