Book Title: Shrutsagar 2017 07 Volume 04 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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॥६॥
SHRUTSAGAR
July-2017 ॥एह अयोध्या- राज भरहेसरो तुम्हे करु ए - ए ढाल ॥ श्रीअ सिद्ध केरुंअध्यांन साहा मांडण मनि धरइ ए, वरतमांन जिन वीस वंदन नित नित करइ ए; श्रीअ श्रीअमंदस्वामि सेवा मागि मुदा ए, निश-दिन एह ज ध्यान नही कांई आपदा ए
॥५॥ सावधांन थई सार श्रु(श)क्रस्तव जव सुणि ए, दोइ कर शिर जोडि तव मरण पंडित पणि ए; अनुक्रमिं दिवस छपन्न अणसण कीधां थया ए, सतावनमि परभाति मांडण शुभ गति गया ए संवत सोलदोइतालि(१६४२) जेष्ठ शुदि बारसिं ए, सीधा सुरगुरुवारि भविकनि तारसि ए...........
॥७॥ ॥अवसर जाणी इंद्र-ए ढाल ॥ राग-गुडी॥ सीधा मांडण साह जांणी ततक्षिण संघ तिहां आवि सहू ए, विधिसुं तास शरीर लेइ चालतां जय जय शबद कहि बहू ए; हाथी हय सिणगारि कीधा आगलिं धज-पताका लहिलहि ए, उछव अति घण थाइ सुंदर मांडवी ते देखी मन गिहिगिहि ए मांडवी ऊपरि सार गोमट पाखलिं मधुकर गुंजारव करि ए, ऊखेवि बि(ब)हू भोग द्रवि ऊछालतां नृत्य करंता संचरि ए; वाजित्र-ताल मृदंग भुंगल झल्लर ढोल दमामां वाजति ए, तंति नफेरी चंग घूघरी दंडारस भेरिं अंबर गाजति ए दहन तणुं जिहां ठाम आवि तिहां कणि भुं(भू) पुंजी जयणा करि ए, चंदन अगरस् काठ साहा मांडण-तन यतन करी तिहां कणि धरइ ए; अगनि तणु परवेस कीधु तव पछी दीप तणी परि-परि जलइ ए, नाटिक बि(ब)हुं परि थाइ उछव अति घणां संघ तणी आशा फलि(लइ) ए ॥१०॥ एक करि पचखांण जीव हणा तनुं निशि भोजन- एक करि ए, एक तजि परनारि ए बि(ब)हू तप करि व्रत चुथु एक ज धरि ए; एक कहि वस्तु पीआरी आप्या विणि नवि लेवा मुझनि आखडी ए,
धिन्न धिन्न एक कहंति एक आसीस घणी दंति (ति)हां मधुरी भाखडी ए॥११॥ 1. बे पंक्ति खूटती होय तेवू लागे छे.
॥८॥
॥९॥
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