Book Title: Shrutsagar 2017 07 Volume 04 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९॥ ॥११॥ श्रुतसागर 12 जुलाई-२०१७ गिरि श्रीसंघ ऊतरीउ रे, पुन्य तणु घट भरीउ रे; आवु हडादरि गामि रे, देवुल एक अभिरांम रे ॥८॥ मांडण मनसुं विचारि रे, रतन वर्ल्ड कुंण हारि रे; पांमु नरभव सार रे, जांणु धरम-विचार रे हुं भवसागर भमीउ रे, भावि जिन नवि नमीउ रे; धरम विना बि(ब)हू रलीउरे, धरम-योग हवि मिलीउ रे ॥१०॥ ढीलि तणुं नहीं काज रे, कीजि अणसण आज रे; संवत सोलदोइतालि(१६४२) रे, महूरत विजय विचालि रे शुदि पुनिम चैत्र मासि रे, कीधुं मननि उह्लासि रे; पिहलुं सनाथ तिहा की,रे, पछिं अणसण लीधुं रे ॥१२॥ साहा जेसिं जाणी वात रे, कीधी संघ विक्षा(ख्या)त रे; संघ मांडण साहनि पूछि रे, साहुजी कहु एह सुं छि रे ॥१३॥ वलतुं साहा मांडण भाखि रे, मिं की, जिन-साखि रे; श्रीसंघ अनुमति देयो रे, मुझ जनम सफल करेयो रे ॥१४॥ संघ मिलीनि विचारि रे, धिन्न ए पंचमि आरि रे; कीधुं उत्तम काम रे, राखुं अविचल नाम रे ॥१५॥ कालि तणु दिन रहीइ रे, श्रीजिनहर मांहि जईइ रे; जिन-साखिं उचरावुरे, अणसण विधिसुं करावुरे ॥१६॥ संघ सहू इम बोलि रे, को नही तुम्हचि तोलि रे.......... ॥१७॥ ॥इम श्रीरिसहेसर गायुं पुन्य पवित्र - ए ढाल॥ कीधी सामग्री अणसणीआनी सार, तिहांथी संघ पुहतुं सीरोहीनगर मझारि; वंदनि बहु आवि बोलि अमृत-बोली(ल), साहा मांडण सरिसुं संघ करि कलोल वाराही राइधनपुर दं(द)जां गांम अनेक, तिहांथी आवी वांदि मांडण धिन्न विवेक; नित नित सीरोहीइं चैत्य तणी परवाडि, तस सुंदर श्रावक लेई चालि ऊपाडि ॥१३॥ ॥१४॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36