Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 5 ढोल ढोल एम शुं कहो छो, सहु छे फूट्या ढोल; ढम ढम वागी ढोल कहे छे, सहुनी वर्ते पोल. अभिमानना तोरे फूले, छे ते साचा ढोल; जेना दिलमां वात न टकती, बोले निंदा बोल. ढम ढम वागी ढोल कहे छे, अंतर दृष्टि खोल; ढोल पोलना जेवी दुनिया, करजे तेनो तोल. ढुंढी ढुंढी ढुंढो सघळं, ढूंढवुं होय ते ढूंढ; अंधारे अजवाळं घेर्युं, ए अंतरनुं गूढ. तारूं तारूं शुं करे छे, फोगट ले 'अवतार; नहि छे तारूं चेतन चेतो, पोताने तुं तार. स्थावर स्थावर शुं कहे छे, जगमां तुं छे स्थिर; स्थिरता सेवो साची समजी, पामो भवजल तीर. दाता दाता शुं कहो छो, दाता जगना दास; दान करे अंतरना गुणनुं, छोडी सघळी आश.. धर्मी धर्मी शुं कहो छो, धर्मी सहु कहेवाय; वस्तु स्वभावे आतमधर्मे, विरला समजे भाय. नागो नागो शुं कहो छो, नागा जन्मे सर्व; नागो नुगरा जनने सेवे, करतो दिलमां गर्व. नफ्फट नफ्फट शुं कहो छो, नफ्फटनो नहीं पार; समजी धर्मने पाप करे ते, साचो नफ्फट धार. निर्मल निर्मल शुं कहो छो, निर्मल कोई कहेवाय; कूड कपटथी न्यारो वर्ते, सुमति संग सदाय. न्यायी न्यायी शुं कहो छो, न्यायीमां अन्याय; परमात्माने प्रेमे परखे, भेददृष्टिथी न्याय. नीच नीच तुं शुं कहे छे, नीचा संत सदाय, जुओ ताड छे ऊंचां केवां, पर्वत जो पेखाय. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir June 2017 सुणजो० ||१३|| सुणजो०॥१४॥ सुणजो०॥१५॥ जो० ||१६|| सुणजो०॥१७॥ सुणजो० ॥१८॥ जो० ||१९|| O सुणजो० ||२०|| सुणजो० ||२१|| सुणजो० ||२२|| सुणजो०॥२३॥ सुणजो०॥२४॥ सुणजो०॥२५॥ (वधु आवता अंके)

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