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June-2017 सम्यक्त्व मूळ बार व्रतमां लीजें व्रत स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत' छे. अदत्त = नहिं आपेलं, आदान = ग्रहण करवू द्रव्यना मूळ मालिकनी परवानगी मेळव्या विना तेनुं धन मेळवीने के पडावी लईने तेनी पर पोतानो अधिकार स्थापित करवो, ते 'अदत्तादान' छे. ___ सम्यक्त्व मूळ बार व्रतमा चोथु व्रत स्थूल मैथुन विरमण व्रत' छे. स्त्री-पुरुषनां युगलथी कराती कामक्रीडा अने कामक्रिया ते मैथुन छे. तेनाथी सर्वथा अटकवू ते संपूर्ण मैथुन विरमण व्रत छे, जे साधुओने होय छे. गृहस्थने तो स्व-पति/पत्नी सिवाय अन्य सर्व साथे मैथुन संबंधोनो त्याग, तेने स्थूल मैथुन कहेवाय छे. जे कोई आ व्रतनुं संपूर्ण पालन करे छे, ते मोक्षरूपी फळ प्राप्त करे छे.
पांचमुं व्रत 'स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत' छे. तेमां सूक्ष्म एटले सर्वथा अने स्थूल एटले मोटो जेना वगर मन न माने एटली जे वस्तुओनो, ‘परिग्रह' एटले संग्रह करवानी वृत्ति अने परिमाण' एटले तेनुं प्रमाण नक्की करवू. धन, धान्य, क्षेत्र(भूमि), वास्तु (घर-गाम वगेरे), रूपु, सुवर्ण, कुप्य (कांसु वगेरे धातुओ तथा धरवखरी के अन्य राच-रचीलु), द्विपद (मनुष्य, पक्षी वगेरे) अने चतुष्पद (जानवर) आ नव प्रकारनो परिग्रह होय छे. तेने प्रमाणयुक्त करवो अर्थात् अमुक वस्तु अमुक प्रमाणथी वधु न राखवी ते 'स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत' छे.
छ→ 'दिग्परिमाण व्रत' छे. दिग् एटले दिशा अने परिमाण एटले माप(प्रमाण) चार दिशा, चार विदिशा, ऊर्ध्व दिशा अने अधो दिशा, आम दशेय दिशामां जवाआववा माटेनुं प्रमाण नक्की करवू. ते 'दिग्परिमाणव्रत' नामनुं पहेलू गुणव्रत छे. निश्चित करेल क्षेत्रसीमानी आगळ क्यांय न जवं. आवां नियमोवाळो श्रावक क्षेत्रमर्यादानी बहार पोते जाय, अन्यने मोकले के त्यांथी कोई पण वस्तु मंगावे के मोकले तो पण तेने दोष लागे छे.
सम्यक्त्वमूळ बार व्रतमां सातमुं भोगोपभोग परिमाण नामनुं बीजु गुणव्रत छे. भोगनो अर्थ भोगवद्, माणवू, अनुभव करवो के स्पर्श करवो वगेरे थाय छे. भोगववा योग्य पदार्थो बे प्रकारना छे, तेमां जेनो एक ज वार उपयोग थई शके तेवा आहार, पुष्प, विलेपन वगेरेने भोग्य पदार्थ कहेवाय छे, अने जेनो वारंवार उपयोग थई शके तेवा स्त्री, घर, वस्त्र, अलंकार आदिने उपभोग्य पदार्थ कहेवाय छे. ___ उपर प्रमाणे भोग अने उपभोगनी वस्तुनु परिमाण करवू तेने सातमु भोगोपभोग' परिमाण व्रत कहे छे.
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