Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रमण भगवान महावीरस्वामी पछीना एक हजार वर्षनी गुरु परंपरा मुनिश्री न्यायविजयजी आमुख : अगियार गणधरो तेणं कालेणं तेणं समयेणं - ते काळे अने ते समये-प्रभु महावीरस्वामी, निर्वाण थयु ते ज रात्ने अवन्तिपति चंडप्रद्योतनुं अवसान थयु, अने पालक कुमार तेनी गादीए आव्यो. बीजे दिवसे प्रातःकाळे प्रभु महावीरनां प्रथम गणधर अने मुख्य शिष्य श्री गौतम-इंद्रभूतिने केवळज्ञान प्रगट थयु. ___ गौतमस्वामीनुं जन्मस्थान मगध देशमां गुब्बर (गोबर, आजे जेने कुंडलपुर कहे छे ते) गाम हतुं. तेमनां पितानुं नाम वसुभूति अने मातानु नाम पृथ्वीदेवी हतुं. ते त्रण भाई हता : इंद्रभूति, अग्निभूति अने वायुभूति. तेमनुं गोत्र गौतम हतुं. ए त्रणेय भाईओ चार वेदनां पारगामी अने चौद विद्यानां जाणकार हतां, अने पांचसो ब्राह्मण शिष्योनां गुरू हतां. तेमने त्रणेने एक-एक संशय हतो. भगवान महावीरस्वामीए ए संशयन समाधान कर्यु एटले एमणे तेमनी पासे पोतानां बधां शिष्यो साथे दीक्षा अंगीकार करी हती. तेमनां साथे साथे ज बीजां आठ विद्वान् ब्राह्मणोए पण दीक्षा अंगीकार करी हती : भारद्वाज गोत्रनां व्यक्त स्वामीए पांचसो शिष्यो साथे; अग्निवेश्यायन गोत्रनां आर्य सुधर्मा स्वामीए पांचसो शिष्यो साथे; वसिष्ठगोत्रनां आर्य मंडितपुत्रे साडां-त्रणसो शिष्यो साथे; काश्यपगोत्रनां आर्य मौर्यपुते साडां त्रणसो शिष्यो साथे; गौतमगोत्रनां आर्य अकंपिते त्रणसो शिष्यो साथे: हारिद्रायण गोत्रनां आर्य अचलभ्राताए त्रणसो शिष्यो साथे अने कौडिन्य गोत्रनां स्थविर आर्य मेईज्जे तथा स्थविर प्रभासे त्रणसोत्रणसो शिष्यो साथे, पोतपोतनां संशयो टळवाथी दीक्षा लीधी. ___आ अगियार गणधरमांना नव गणधरो तो महावीरस्वामीनी विद्यमानतामां ज राजगृही नगरीमां एक मासनु अनशन करी, मोक्षे गयां हतां, एटले गौतमस्वामी अने सुधर्मास्वामी ए बेज बाकी रह्यां हतां. आ बेमां पण गौतमस्वामी प्रभुमहावीरनां निर्वाण पछी बीजे ज दिवसे केवळज्ञानी थयां एटले श्री संघना नायक सुधर्मास्वामी ज गणाया, अने बधाय गणधरोनां शिष्यो तेमनी आज्ञामां वर्तवा लाग्यां. आ रीते प्रभु महावीरनां मुख्य पट्टधर सुधर्मास्वामी थयां. आथी में पण तेमने ज प्रथम पट्टधर मानी आ लेखमां तेमनी पट्टपरंपरा वर्णवी छे. For Private and Personal Use Only

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