Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 31 SHRUTSAGAR June-2017 ___ पोतानी पाटने योग्य पुरूषनी तपास करतां तेमने कोइ पण योग्य पुरुष नहीं मळी आवतां तेमणे ज्ञाननो उपयोग मूक्यो. तेमां तेमणे जणायु के - शय्यंभवभट्ट जे ते वखते ब्राह्मण गुरू पासे यज्ञ करावी रह्यो छे ते पोतानी पाटने योग्य छे. आथी पोताना बे शिष्योने तेनी पासे मोकली 'अहो कष्टमहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते परम्' कहेवरावी तेने उपदेश्यो-के हिंसाथी कांइ ज लाभ नहीं थाय. आथी शय्यंभवे पोताना ब्राह्मण गुरू पासे जइ, तलवार काढी पूज्यु, ‘महाराज, आमां सत्य शुं छे ते कहो!' बीकना मार्या गुरूए तरत जणाव्यु ‘आ यज्ञस्तंभ नीचे शांतिनाथनी प्रतिमा छे. अने तेना प्रभावथी यज्ञनो महिमा फेलायो छे. पछी ए जिनमूर्ति बहार काढी, तेना दर्शनथी प्रतिबोध पामी शय्यंभव भट्टे प्रभवस्वामी पासे दीक्षा लीधी' ___ शय्यंभव भट्टने योग्य जाणी प्रभवस्वामीए शासनधुरा तेमना हाथमां सोंपी. अने अनुक्रमे वीर नि. सं. ७५मां' ८५ वर्षनी वये तेओ स्वर्गे गया. ४. शय्यंभवस्वामी-सूरि तेमनां माता-पितानु नाम नथी मळतुं. तेओ जाते यजुर्वेदी ब्राह्मण हता. तेमनुं गोत्र वक्षस हतुं. एक वखत तेओ राजगृहीमां यज्ञ करावता हता त्यांथी प्रभवस्वामीए तेमने प्रतिबोध पमाडी दीक्षा आपी. ज्यारे तेमणे दीक्षा लीधी त्यारे तेमनी पत्नी सगर्भा हती. थोडा समये तेणे एक पुत्रने जन्म आप्यो. आ पुत्रे पण बाल्यावस्थामां ज पिता पासे दीक्षा लीधी तेनुं नाम मनक मुनि राखवामां आव्यु. दीक्षा पछी ज्यारे गुरूए जाण्यु के तेनुं आयुष्य अल्प छे त्यारे गुरूए पोताना शिष्यनुं जीवन उज्जवळ करवा माटे तेने साधुधर्ममां स्थिर करवाना आशयथी दशवैकालिक सूत्र बनाव्यु. आ ग्रंथना अध्ययनथी छ मासना टूका गाळामां आत्मकल्याण साधी मनक मुनि स्वर्गे गया. जैन सत्यप्रकाश वर्ष-४, पर्युषणपर्व अंकमांथी साभार (क्रमशः) 1. वीरवंशावलीमां लख्यु छे के ‘वीर नि. सं. ७५मां पार्श्वप्रभुनी पट्टपरंपरामां थयेला रत्नप्रभसूरिजीए ओईसा (ओसिया) नगरमां चामुंडा देवीने प्रतिबोधी घणा जीवोने अभयदान दीधुं अने तेनुं नाम साच्चिला (सच्चाईका) पाड्यु. पुनः ए ज नगरीना राजा उदयदेव परमारने प्रतिबोधी तेनी साथे १९९००० गोत्रीओने जैनधर्ममां स्थिर कर्या, अने त्यां पार्श्वप्रभुनी प्रतिमा स्थापी. आ वखतथी उपदेश ज्ञाति अने उपदेशगच्छ स्थपायां, जे अत्यारे ओसवालज्ञातिना नामथी ओळखाय छे. आ रीते ओसवाल समाजना आद्य उत्पादक श्री रत्नप्रभसूरिजी छे. आवी ज रीते भिन्नमालमांथी जे जैनो थया ते श्रीमाल अने पद्मावतीनगरीमाथी जे जैनो थया ते पोरवाल कहेवाया. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36