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श्रुतसागर
जून-२०१७ लंबाई २६ सें.मी. तथा चौड़ाई ११ सें.मी. छे. प्रत्येक पत्रमा १३ पंक्तिओ छे तथा प्रत्येक पंक्तिमां लगभग ३५ थी ३६ अक्षरो छे. प्रतनी भौतिक स्थिति सारी छे. प्रतिलेखक द्वारा भूलथी अमुक जग्याए अक्षरो आडा- अवळा थई गयेल लागे छे. १२मी सदीथी १९मी सदी पूर्वार्ध सुधी- साहित्य, जेने आपणे प्राचीन के मध्यकालीन गुजराती साहित्य तरीके ओळखीए छीए तेनो उल्लेख आ प्रतमां करवामां आव्यो छे. प्रतिलेखन पुष्पिकामां उल्लिखित लेखनकाळ विक्रम संवत १७६६ छे. पुष्पिका अंतर्गत प्रतिलेखके पोतानो परिचय आप्यो नथी. कृति परिचय : ____ अपभ्रंश मिश्रित जुनी गुजरातीनी आ रचना छे. आ कृतिना कर्ता सुखविजय छे, तेमना गुरु पंडित दयाविजय छे. तेओ तपागच्छना साधु छे. प्रशस्तिमा रचनाकाळनो उल्लेख नथी. पण, प्रतनी लेखन संवत १७६६ छे. तो रचना एना पूर्वनी होवी जोईए. अनुमानित १७/१८मी सदीनी आ रचना होवी जोईए.
सकल जिनेश्वरने, गुरूजनने तेमज सरस्वतीने प्रणाम करी बार व्रतनुं विवरण संक्षिप्त रीते समजाववामां आव्यु छे. सम्यक्त्व मूळ बार व्रतमां स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत' प्रथम व्रत छे. ते सर्व व्रतोमां श्रेष्ठ अने मुख्य व्रत छे. आ व्रतना पालनथी जे 'अहिंसकभाव' प्रगट थाय छे अने उत्तरोत्तर वृद्धि पामे छे. ते 'अहिंसक भाव' ज वास्तवमां आत्मानो शुद्ध भाव छे. कोई त्रस जीवने जाणी जोईने संकल्पीने ईरादापूर्वक हणवानी बुद्धिए हणवा नहिं.
बार व्रतमां बीजं व्रत ‘स्थूल मृषावाद विरमण व्रत' छे. 'मृषावाद' नो अर्थ छे खोटुं बोलवू. आ प्रमाणेनी श्रावकनी प्रतिज्ञाविषयक जे पांच मोटा जूठाणां छे. तेने शास्त्रमा आ प्रमाणे कयां छे. १. कन्यालीक : कन्या संबंधी सगपण विवाहादिमां जूठु बोलवू नहिं. २. गवालीक : गाय, पशु आदिक चतुष्पद संबंधी तमाम प्रकारनां असत्य ते बीजं मोटु
जूठ छे. जे श्रावके बोलवा नथी. ३. भूम्यलीक : भूमि, खेतर, मकान संबंधी जूळू न बोलवू. ४. थापणमोसो : पारकी थापण ओळववी नहिं. तेने न्यासापहार पण कहेवामां आवे
छे. न्यास' एटले थापण, तेनो 'अपहार' करवो एटले तेने ओळववी. ५. कूट साक्षी : कोईनी खोटी साक्षी पूरवी ए महा अनर्थन मूळ छे.
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