Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 19 June 2017 १३. दव-दानकर्म : आग लगाडवानुं कर्म ते 'दव - दानकर्म' छे. शोखथी के दुश्मनावटथी आग लगाडवी, जूनां घास, जंगलो वृक्षो वगेरेने बाळी नांखवा वगेरे 'दव-दानकर्म' नामना कर्मादान तरीके ग्रहण करवुं. १४. शोषण कर्म : धान्य उगाडवा माटे सरोवर, धराओ, नदी, नीक के नहेर द्वारा पाणी वहेवडाववी, कूवा-टांकी खाली करी आपवी वगेरे जल-शोषण कर्म छे. १५. असती-पोषण कर्म : असती एटले कुलटा-व्याभिचारिणी स्त्री. तेने पोषवानुं कर्म ते असती = व्रत विहीन पोषण कर्म छे. दास-दासीओ, नपुंसको वगेरेने हलको धंधो करवा माटे उछेरवा तेमनी पासे विविध खेल कराववा, पाळवां वगेरे असती पोषण कर्म छे. ॥८०॥ श्रीगुरूभ्यो नमः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ प्रमाणे सतर्क रही प्रमाद राख्या विना योग्य प्रमाण नक्की करी उत्तम कक्षाना गृहस्थजीवन माटे जरूरी धन मेळववा अल्पहिंसावाळा मार्गे आ जगतमां घणां छे. सावधान थई समकितनुं पालन करीए अने जो कदाच भूलथी नियमनो भंग थई जाय तो गुरु समक्ष एकरार करी तेनी आलोचना करीए एवो भावधरी तपागच्छना पंडित दयाविजयना शिष्य मुनि सुखविजये 'बार व्रत सजझाय' नी रचना श्रावकना हित माटे करी छे अने आ सज्झाय सांभळता सुखनो अनुभव थाय एवो भाव व्यक्त करे छे. संदर्भ सूचि १. जैननां कर्तव्यो, कर्त्ता - धर्मगुप्तविजयजी, प्रका० - वि. २०३२, २. श्रावकनुं कर्तव्य तथा विविध स्तवनादि, श्रावक भीमसिंह माणेक, प्रका० वि.१९७४, ३. सूत्र संवेदना (भाग-४), कर्त्ता - साध्वीश्री प्रशमिताश्रीजी बार व्रत सजझाय सकल जिनेसर पाय नमी, प्रणमी सह (द) गुरु राय; कविजन माता सरसती प्रेम प्रण पा बार व्रत संक्षेपथी सास्त्र तणई अनुहार; जे पालई मन सुधई, ते पामई भव पार For Private and Personal Use Only 11211 11211

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