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SHRUTSAGAR
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ढोल ढोल एम शुं कहो छो, सहु छे फूट्या ढोल; ढम ढम वागी ढोल कहे छे, सहुनी वर्ते पोल. अभिमानना तोरे फूले, छे ते साचा ढोल; जेना दिलमां वात न टकती, बोले निंदा बोल.
ढम ढम वागी ढोल कहे छे, अंतर दृष्टि खोल; ढोल पोलना जेवी दुनिया, करजे तेनो तोल. ढुंढी ढुंढी ढुंढो सघळं, ढूंढवुं होय ते ढूंढ; अंधारे अजवाळं घेर्युं, ए अंतरनुं गूढ. तारूं तारूं शुं करे छे, फोगट ले 'अवतार; नहि छे तारूं चेतन चेतो, पोताने तुं तार.
स्थावर स्थावर शुं कहे छे, जगमां तुं छे स्थिर; स्थिरता सेवो साची समजी, पामो भवजल तीर.
दाता दाता शुं कहो छो, दाता जगना दास; दान करे अंतरना गुणनुं, छोडी सघळी आश..
धर्मी धर्मी शुं कहो छो, धर्मी सहु कहेवाय; वस्तु स्वभावे आतमधर्मे, विरला समजे भाय.
नागो नागो शुं कहो छो, नागा जन्मे सर्व; नागो नुगरा जनने सेवे, करतो दिलमां गर्व. नफ्फट नफ्फट शुं कहो छो, नफ्फटनो नहीं पार; समजी धर्मने पाप करे ते, साचो नफ्फट धार. निर्मल निर्मल शुं कहो छो, निर्मल कोई कहेवाय; कूड कपटथी न्यारो वर्ते, सुमति संग सदाय. न्यायी न्यायी शुं कहो छो, न्यायीमां अन्याय; परमात्माने प्रेमे परखे, भेददृष्टिथी न्याय. नीच नीच तुं शुं कहे छे, नीचा संत सदाय, जुओ ताड छे ऊंचां केवां, पर्वत जो पेखाय.
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June 2017
सुणजो० ||१३||
सुणजो०॥१४॥
सुणजो०॥१५॥
जो० ||१६||
सुणजो०॥१७॥
सुणजो० ॥१८॥
जो० ||१९||
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सुणजो० ||२०||
सुणजो० ||२१||
सुणजो० ||२२||
सुणजो०॥२३॥
सुणजो०॥२४॥
सुणजो०॥२५॥
(वधु आवता अंके)