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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कक्कावलि आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी कपटी कपटी शं कहो छो, कपट न जाणे कोय; कर्मनी साथे कपट करो तो, साचा कपटी सोय; सुणजो वात हमारी लोक, शाने मनमां फूलो फोक ? ॥१॥ खाखी खाखी शुं कहो छो, सहुनी थाशे खाख; साचा खाखी अंतरना जे, जाणे माया राख. सुणजो०॥२॥ गांडो गांडो शुं कहो छो, गांडा सहु कहेवाय; भेद छेद आतमना ज्ञाने, समजु तेह गणाय. सुणजो०॥३॥ घारी घारी शुं कहो छो, घारी समता लेख; समता स्वादे सुखिया संतो, अंतरमां ते पेख. सुणजो०॥४॥ चाकर चाकर शुं कहो छो, चाकर नर ने नार; करे चाकरी परमातमनी, साचो चाकर धार. सुणजो०॥५॥ छानु छानु शुं कहो छो, छा सत्य न क्यांय मायाथी छानो छे आतम, शाने मन हरखाय. सुणजो० ॥६॥ जाति जाति शुं कहो छो, जात न भात न कोय; जन्मीने जन्मे नहीं जे जन, जाति तेनी जोय. सुणजो० ॥७॥ झाझ झाझ एम शुं कहो छो, साचुं नहीं छे झाझ; देह झाझ परगट पेखो आ, पामो शिवपुर राज. सुणजो० ॥८॥ टेंटें टेंटें शुं करो छो, टळवळता सहु जाय; स्थिरता आतममां जेनी छे, टेंटे तस नहि थाय. सुणजो०॥९॥ ठोठ ठोठ एम शुं कहो छो, सहुने ए छे छाप; अंतरमा परमातम परखे, नहि ते ठोठ अपाप. सुणजो०॥१०॥ डाह्या डाह्या शुं कहो छो, डाह्या गांडा सर्व; निर्लेपी निर्मोही डाह्या, कदि न करता गर्व. सुणजो०॥११॥ ढढ्ढो ढढ्ढो शुं कहो छो, सहु ढढ्ढा शिरदार; भूल्या मोह मायामां जे जन, साचा ढढ्ढा धार. सुणजो०॥१२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525323
Book TitleShrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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