Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीन अंक आपके करकमलों में सादर समर्पित करते हुए अपार प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। प्रस्तुत अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. का कृति “कक्कावलि” के 'क' से 'न' तक के अक्षरों की गाथा प्रकाशित की जा रही है। इस कृति में वर्णमाला के अक्षरों के अनुसार मानव-जीवन के कल्याण हेतु सार्थक उपदेश दिए गए हैं, द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनांशों की पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है। अप्रकाशित कृति प्रकाशन स्तंभ के अन्तर्गत इस अंक में दो कृतियों का प्रकाशन किया जा रहा है। प्रथम कृति गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. द्वारा संपादित "रूपपुर पार्श्वजिनेश्वर स्तवन” है, जो अद्यावधि सम्भवतः अप्रकाशित है। इस कृति के कुल चार ढालों में पार्श्वनाथ प्रभु के जन्म से विवाह तक के वृत्तान्त का संक्षेप में वर्णन किया गया है, साथ ही रूपपुर नगर से संबंधी ऐतिहासिक वर्णन किया गया है। द्वितीय कृति शहरशाखा, पालडी में कार्यरत श्रीमती डिम्पलबेन शाह के द्वारा सम्पादित मुनि सुखविजय के द्वारा वि.सं. १७६६ में रचित “बारव्रत सज्झाय” है, जो कि संभवतः अप्रकाशित है। इस कृति में सम्यक्त्वमूल बारह व्रतों का विस्तृत वर्णन करने के बाद कर्ता ने संक्षेप में पन्द्रह कर्मादान का भी वर्णन किया है। यह कृति सभी जैन श्रावकों हेतु अत्यन्त उपयोगी व उपदेशप्रद सिद्ध होगी। अन्य विशिष्ट प्रकाशनस्तंभ के अंतर्गत इस अंक में कवि धनपालरचित "ऋषभपंचाशिका” के अन्तिम भाग गाथा ४० से ५० तक का प्रकाशन ब्राह्मीलिपि में किया जा रहा है। इस कृति का लिप्यंतरण कार्य श्री किरीटभाई के. शाह द्वारा किया गया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के बाद के एक हजार वर्ष की गुरु परम्परा प्रकाशित की जा रही है, जिसमें आर्य सुधर्मा स्वामी, जंबूस्वामी, प्रभवस्वामी तथा शय्यंभवसूरि का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत अंक में प. पू. आचार्य श्री विजयमुनिचन्द्रसूरिजी म. सा. से प्राप्त वर्तमान में संशोधन-सम्पादन के क्षेत्र में प. पू. साधु-साध्वीजी भगवन्तों के द्वारा किए जा रहे कार्यों की सूचनाएँ प्रकाशित की जा रही हैं, जिससे विद्वद्वर्ग को जैन ग्रन्थों के ऊपर किये जा रहे कार्यों के विषय में जानकारी प्राप्त होगी. आशा है, इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे अगले अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके। For Private and Personal Use Only

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