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रूपपुर पार्श्वजिनेश्वर स्तवन
गणि सुयशचंद्रविजयजी घणां वखत पूर्वे “रूपपुर पार्श्वजिनेश्वर स्तवन” नामनी प्रस्तुत कृति जोवा मळेली. पहेली नजरे तो कृतिनी रचना पार्श्वनाथ प्रभुनां जीवनचरित्र उपर बनी होय तेवु लाग्यु पण साद्यंत कृति वांची त्यारे तेमांनी ऐतिहासिक विगत जाणी कृतिने संपादित करवी एम विचार्यु हतुं अने आजे ते कृति वाचकोनां अभ्यासार्थे अहीं प्रकाशित करीए छीए. कृति परिचय
कृति कुल ४ ढाळमां विभक्त थयेली छे. जेमां प्रथम ढाळ विछियानी देशी, बीजी रसियानी, त्रीजी कनक कमल पगला करे' ए थोइ जेवी देशी अने चोथी झूबखडानी देशी ए रागोमां रचायेल छे. कृतिकारे प्रथम ढाळनां शरूवातनां ज पद्योमां पार्श्वनाथ प्रभुनां जन्मथी लई लग्न सुधीनो वृत्तांत खूब ज संक्षेपमां आलेख्यो छे, ज्यारे त्यारबादनी कडीओमां तथा बीजी ढाळमां प्रभु पर कमठासुरे करेलां उपसर्गर्नु अने ते दोषनां कारण- वर्णन करे छे, अहीं खास कमठने समकित पमाड्यानी वात ध्यानार्ह छे. त्रीजी तथा चोथी ढाळमां कवि अनुक्रमे रूपपुरनगरनी उत्पत्ति, त्यांनी लोकव्यवस्था, गामनां मंदिर तथा जिनालयनुं पोतानां रूपपुरनां चातुर्मास दरम्यान श्रीसंघमां पर्युषण दरम्यान थयेली तपश्चर्यानुं ऐतिहासिक वर्णन करे छे. तेमांय रूपादेनां नामे नगर वसाव्यानी, पटेल व्यापारी तेडाव्यानी पादर देवीनी स्थापना कर्यानी विगतो खास वांचवा योग्य छे.
अहीं प्रश्न थशे के जो कृतिकारने पार्श्वनाथ प्रभुनी स्तवना ज करवानी छे तो तेमां चातुर्मासनो उल्लेख करवानी शी जरूर छे? जो के आ प्रश्ननो जवाब शोधवो तो अघरो छे पण एम विचारी शकाय के कविने स्तवना जे करवानी छे ते रूपपुरमंडण पार्श्वनाथ प्रभुनी करवानी छे, ते रूपपुर क्युं ? तो कविए चोमासु कर्यु ते, पाछु ते रूपपुर केQ? तो ज्यां आटली बधी तपश्चर्यादि आराधनाओ थई ते. आम, रूपपुरनगरनां पार्श्वनाथनी स्तवना साथे लोको ते नगरनां आराधकोनी पण अनुमोदना करी शके ते आशयथी कविए चातुर्मासादिनी विगतो उमेरी हशे एम लागे छे.
आजे तो वोट्स अपथी दुनिया खूब झडपी थइ गइ छे. हजू तो कोइ सारी घटना घटी नथी के वातो वहेती थई नथी. पाछां आपणे पण ए घटनाने अनुलक्षीने २-४ स्टेटमेंट आपीने पाछां निजानंदमां खोवाइ जइए. पण सुकृतनी अनुमोदना
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