Book Title: Shrutsagar 2017 02 Volume 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR February-2017 राजपुत्र भद्रकना मनमां पण आ वात उतरी अने तेणे पोतानी व्यवहार अनभिज्ञतानो दोष जाणी लीधो. राजपुत्रे महात्माने अने पोतानी भगिनीने का के हवेथी हुं व्यवहारमा कुशळ थईश अने ब्रह्मज्ञाननो तिरस्कार करावीश नहि. बीजा दिवसे राजपुत्र भद्रक राजानी सभामां गयो अने राजाने नमस्कार करीने व्यवहारमा व्यवहारकुशळताथी वर्तीने राजानी माफी मांगी अने प्रारब्धयोगे प्राप्त थयेल कार्योने बाह्यनी रीतथी करवा लाग्यो. तेथी राजा तेना उपर खुश थयो अने कहेवा लाग्यो के, भद्रक युवराजनुं गांडपण हवे चाल्यु गयु अने ते डाह्यो थयो छे तेथी तेने खासडां मारवानो हुकम बंध करी दीधो अने राज्यमां जाहेर कर्यु के सर्व प्रजाने युवराजनी आज्ञा प्रमाणे वर्तवू. युवराज दुनियाना कार्यो दुनियाना व्यवहार प्रमाणे करवा लाग्यो तेथी ते सुखी थयो. युवराज भद्रककुमारना दृष्टांतथी अध्यात्मज्ञानीओ घणो सार खेंची शके तेम छे. अध्यात्मज्ञाननी वात गमारोमां करवाथी गमारो अध्यात्मज्ञान समजी शकतां नथी अने उलटुं तेओ अध्यात्मज्ञानीओने खासडानो मार मारवा जेवं करे छे. व्यवहारकुशल ने शुष्कतारहित अध्यात्मज्ञानीओ व्यवहारमा व्यवहार प्रमाणे पोताना अधिकारे वर्ते छे. अने निश्चयथी अध्यात्मस्वरूपमां रमणता करे छे तेथी दुनियामां तेओ डाह्या गणाय छे. केटलाक शुष्क अध्यात्मीओ व्यवहार कुशलताना अभावे ज्ञाननी वार्ताओ गमारोमां करीने अध्यात्मज्ञाननी हांसी करावे छे. पूज्यपाद उपाध्याय भगवंत श्रीमद् यशोविजयजीनी आ वाणीनो परमार्थ हृदयमां धारण करीने अध्यात्मज्ञानीओ वर्ते तो अनेक मनुष्योने तेओ अध्यात्मज्ञाननो आस्वाद चखाडी शके. अध्यात्मज्ञानीओनी बुद्धि सूक्ष्म होवाथी तेओ आत्मामां ऊंडा उतरी जाय छे. तेथी तेओने व्यवहारमा रस पडतो नथी एम बने छे. तो पण तेओए जे-जे अवस्थामां अधिकारभेदे उचित व्यवहार होय तेने न छोडवो जोइए. ___अध्यात्मज्ञानीओए पण अध्यात्मज्ञान आखी दुनियामां प्रसरे एवो ज्यां भाव होय त्यां सुधी तेओए व्यवहारमार्गने अमुक अधिकारपणे अवलंबवो जोइए. खावानां, पीवानां, लघुनीति अने वडीनीति तथा निद्रा अने आजीविकादि कृत्यो ज्यां सुधी करवा पडे त्यां सुधी तेओए व्यवहार धर्मक्रियाओने पण अमुक दशापर्यंत करवी जोईए. अध्यात्मज्ञान खरेखर अमृतरस समान छे. अध्यात्मज्ञानरूप अमृतसरसनुं पान करवाथी जन्म-जरा अने मरणना फेरा टळे छे. श्रीआत्मानंद प्रकाश ई.स. १९९९ अंक ९ मांथी साभार For Private and Personal Use Only

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