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अर्थात् मैं तो बहुगुणी हूँ तो फिर मैं मनुष्य के सदृश कैसे हो सकता हूँ?
पुनः कोविदेन प्रोक्तम्- येषां न विद्या० मनुष्यरूपेण भवन्ति काकाः । तच्छ्रुत्वा
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काकाः प्राहुः
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प्रियं दूरगतं गेहं, प्राप्तं जानामि तत्क्षणात् । न विश्वसामि कस्यापि, काले चालयकारकः ॥
फिर से विद्वान् पंडित ने कहा जिस व्यक्ति में विद्यादि गुण न हों, वह मनुष्यरूप में कौवे के समान है। यह सुनकर कौवों ने कहा कि- जिसका प्रियतम घर से दूर गया हो वो वापस कब आयेगा, मैं जानता हूँ, प्रातःकाल का बोध जानकर तत्क्षण उड़ जाता हूँ, किसी पर भी विश्वास नहीं करता हूँ । कालज्ञाता हूँ, सुकाल-दुष्काल आदि समय के अनुसार आवाज करने पर उस शकुन के अनुसार शकुनज्ञाता फलकथन करते हैं । तेन कृतज्ञस्य कृतघ्नोपमानं नोचितम्
अतः कृतज्ञ के लिए कृतघ्नवाली उपमा उचित नहीं है ।
'ततः सुधिया प्रोक्तम् - येषां न विद्या० मनुष्यरूपेण भवन्ति चोष्ट्राः ॥ तच्छ्रुत्वा उष्ट्र चाहुः
एकस्यां घटिकायां योजनगामी सदा नृपतिमान्यः । भारोद्वहनसमर्थः, कथं समो निर्गुणैः सार्धम् ॥
February-2017
स्वामी की आज्ञा से एक ही घडी में एक योजन की दूरी तय करता हूँ, सदा राजाओं का सम्मानपात्र रहा हूँ, भार वहन करने में सदैव समर्थ रहता हूँ, तो मेरी तुलना निर्गुणों के साथ कैसे योग्य है? ±उष्ट्रः प्राह
वपुर्विषमसंस्थानं, कर्णज्वरकरो रवः । करभेणाशुगत्यैवाऽच्छादिता दोषसंततिः ॥
1 (क) पुनरपरो निपुणो बभाण ।
2 मात्र 'क' में यह पाठ है।
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ऊँट बोला कि- मेरा शरीर टेढ़ा-मेढ़ा है, मेरी आवाज़ कर्कश है अर्थात् कर्णप्रिय नहीं है, अपने बच्चों के साथ शीघ्रगति से चलने पर भी लोगों के द्वारा दोष की पोटली से ढँका जाता हूँ ।
एकेनैव गुणेन राजमान्यः स्यां चन्दनवत्
ऐसे एक ही गतियुक्त गुण से मैं चन्दन की तरह राजा का सम्मान पाता हूँ ।
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