Book Title: Shrutsagar 2017 02 Volume 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 21 February-2017 धूलिपुञ्जः प्राह - कारयामि शिशून् क्रीडां, पङ्कनाशं करोमि च । मत्तोऽजनि रजःपर्व, लेखे क्षिप्तं फलप्रदम्॥ पुनः कवीश्वर ने कहा जिस व्यक्ति में विद्यादि गुण न हों, वह इस लोक में धूल के ढेर के समान है। ऐसा सुनकर धूलसमूह ने कहा कि हम बालकों को क्रीडा करवाते हैं, कीचड़ का नाश करते हैं, होली के पर्व में लोग धूलि से खेलकर मत्त(मस्त) होते हैं। हल से खींची गई रेखावाले खेत में बोये गये बीज फलदायी होते हैं। पुनरपरेण विदुरेणोक्तम्- येषां न विद्या० 'मनुष्यरूपेण शूनः स्वरूपः॥ तच्छ्रुत्वा श्वा प्राह स्वामिभक्तः सुचैतन्यः, स्वल्पनिद्रः सदोद्यमी। अल्पसंतोषवान् शूरः, तस्मात्तत्तुल्यता कथम् ॥ पुनः दूसरे पंडित ने कहा जिस व्यक्ति में विद्यादि गुण न हों, वह मनुष्यरूप में श्वान(कुत्ते) के समान है। यह सुनकर श्वान बोला – “स्वामि की आज्ञा का पालन करना, सदैव सजग रहना, कम निद्रा लेना, सदा उद्यमी रहना, थोड़े में ही संतुष्ट होना, साहस, शूरता आदि गुण होते हुए भी हमारी तुलना मनुष्य के साथ कैसे हो सकती है ?" तेन ततोऽधिक गुणोऽहम् कथं समःअतः मनुष्य से अधिक गुण हमारे अन्दर हैं तो हम कैसे समान हुए? पुनः प्रवीणेन प्रोक्तम्- येषां न विद्या० मनुष्यरूपेण खराश्चरन्ति ॥ तच्छ्रुत्वा खरश्चाह शीतोष्णं नैव जानामि, भारं सर्वं वहामि च। तृणभक्षणसन्तुष्टः, सदापि प्रोज्ज्वलाननः ॥ पुनः कुशलज्ञानी पंडित ने कहा जिस व्यक्ति में विद्यादि गुण न हों, वह मनुष्यरूप में गर्दभ के समान है, इस प्रकार सुनकर गर्दभ ने कहा कि ठंडी और गरमी को न जानते हुए अर्थात् इनकी परवाह किये बिना ही सभी प्रकार के भार का वहन करता हूँ, मात्र घास खाकर ही सन्तुष्ट रहता हूँ एवं सदैव उज्ज्वल कान्तिवान् रहता हूँ। अहं तु बहुगुणः, कथं तत्सदृगहं स्याम्? 1 (क) मनुष्यरूपा भषणस्वरूपाः। For Private and Personal Use Only

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