Book Title: Shrutsagar 2017 02 Volume 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 28 February-2017 राजानी राजसभामां तेमणे दिगम्बरोने पराजय आप्यो हतो. त्रिभुवनगिरि' अने सपादलक्ष (मालवा) आदिना राजाओने जैन बनाव्यां हतां अने ८४ वादो जीतीने आनन्दित कर्यां हतां. ६. तर्कपंचानन श्री अभयदेवसूरिजी तेमनो सत्तासमय विक्रमनी ११ मी शताब्दि छे. तेओ एक समर्थ टीकाकार हतां तेमणे श्री सिद्धसेन दिवाकरजीना सन्मतितर्क' उपर २५ हजार श्लोक प्रमाण विस्तृत टीका रची छे. तेमां दशमी शताब्दि सुधीना चालु सर्ववादोनी सुन्दर रीतिए गोठवण करी छे. ते टीकार्नु नाम ‘वादमहार्णव' अथवा 'तत्त्वबोधविधायिनी' छे. तेमनी वाद लखवानी पद्धति घणी ज मनोज्ञ छे. प्रथम चालु सिद्धान्तमां बिलकुल नहिं माननार पक्ष पासे बोलावे, पछी कंइक स्वीकार करनार पासे तेनुं खंडन करावे ने तेनो मत प्रदर्शित करावे, पछी वधु माननार पासे, पछी घणु स्वीकार करनार पासे ने छेवटे सर्वमां दूषण बताववा पूर्वक स्वाभिमत सिद्धान्तनुं मंडन करे. ते वांचता जाणे एम लागे के आपणे साक्षात् एक वादसभामां ज होइए अने प्रत्यक्ष वाद सांभळतां होइए. दर्शनशास्त्रोमां मीमांसा दर्शन समजवं मुश्केल होय छे. ते मीमांसा दर्शनना आकर ग्रन्थ कुमारिल भट्टना श्लोकवार्तिक'नु आवादमहार्णव'मां विशेष खंडनमंडन छे. तेथी आ ग्रन्थ समजवो घणो कठिन गणाय छे. ने ते ज कारणे अभ्यासमां अल्प आव्यो छे. शान्तिरक्षित के जेओ नालन्दा विश्वविद्यालयना मुख्य आचार्य हतां तेमनां बनावेल 'तत्त्वसंग्रह उपरनी कमलशीलनी बनावेल ‘पंजिका' नामनी टीका, दिगम्बराचार्य प्रभाचंद्रे रचेल 'प्रमेयकमलमार्तंड' तथा 'न्यायकुमुदचंद्रोदय' वगेरे ग्रन्थोनो आ टीकामां उपयोग छे. वादि देवसूरिजी, मल्लिषेणसूरिजी तथा उपाध्याय श्री यशोविजयजी वगेरेए स्थळे स्थळे आ टीकानो उल्लेख तथा छूटथी उपयोग कर्यो छे. ११ मां सैका पछी जैन न्यायना मोटा मोटा ग्रन्थो रचाया ते सर्वमां आ टीकानी सहाय लेवामां आवी छे. आ टीकामां गूंथायेल विषयो पाछळना ग्रन्थकारोने सरळताथी मळी गयां छे. आ टीकामां शब्दोनी बहु रमकझमक नथी पण भाषाप्रवाह एक निर्मळ झरणनी माफक सीधो वहे छे. प्रो. लोयमेने श्री अभयदेवसूरिजीना सम्बन्धमा जणाव्यु छे के ‘तेमनो उद्देश ते समयमा प्रचलित सर्व वादोनो संग्रह करी अनेकान्तवादस्थापन करवानो हतो.' –ते आ टीका जोवाथी स्पष्ट समजाय छे. श्री अभयदेवसूरिजी 1 सपादलक्षगोपल-त्रिभुवनगिर्यादिदेशगोपालान् । युयुश्चतुराधिकाशोत्या, वादजयै रञ्जयामास (पार्श्वनाथचरित्र) For Private and Personal Use Only

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