Book Title: Shrutsagar 2017 02 Volume 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 SHRUTSAGAR February-2017 अने महत्त्वनी छे. जैनोने प्रमाणनिरूपणनो कोइ ग्रन्थ पूरो पाडवाना हेतुथी सिद्धसेन दिवाकरे 'न्यायावतार' नामनो ग्रन्थ रच्यो हतो. प्रमाणनी बाबतमां जैन सिद्धान्त स्थापनने बदले हरिभद्रे दिङनाग उपर टीका लखीने जैनोने बौद्ध प्रमाणशास्त्रीओना ग्रन्थोनुं अध्ययन करवानी प्रेरणा करी. आ रीते देखावमां तो एमणे ए लोकोनी भारे महत्ता स्वीकारी, परंतु पोतना ‘अनेकांतजयपताका' ग्रन्थमा धर्मकीर्तिना प्रमाण विषेना केटलाक सिद्धान्तोनुं सारं खंडन पण कर्यु. एमना पछी घणां वर्षो सुधी जैनोने बौद्धोना प्रमाणनिरूपणमां रस रह्यो हतो अने एने लीधे ज अत्यारे आपणे धर्मकीर्तिन न्यायबिन्दु अने धर्मोत्तरनी न्यायबिन्दु-टीका उपलब्ध करी शक्या छीए. कारण के आ ग्रन्थोनी जूनामां जूनी प्रतो अने बीजा ग्रन्थ उपरनी टीकानो अमुक भाग जैन भंडारोमांथी ज मळे छे.” एक स्थळे उपाध्याय श्री यशोविजयजी, श्री हरिभद्रसूरिजी माटे जणावे छे केः- “ज्यारे जैनदर्शनरूपी आकाशमां पूर्वरूपी ताराओने अस्त थवानो प्रभात काळ हतो ते समये पटुलोचन हरिभद्रसूरिजी उत्पन्न थयां. तेमणे सूक्ष्म दृष्टिथी ते ताराओने अवलोकी तेना प्रतिबिम्ब ग्रहण करी अने प्रकरणो रूपे तेनुं गूंथन कर्युः" ए रीते श्री हरिभद्रसूरिजी जैनदर्शनमां एक समर्थ नैयायिक थयां अने जैन न्याय आदित्यनी आडे आवतां वादळोने विखेरी नाखी ते सूर्यना प्रकाशने तेमणे खूब प्रसार्यो. २. श्री बप्पभट्टिसूरिजी तेमनो सत्तासमय विक्रम संवत ८०० थी ८९५नी आसपासनो छे. तेमना समयमां राजाओ पोतपोताना राज्यमां एक विद्वान पंडितने राखतां अने तेमां पोतानू भूषण समजतां. बप्पभट्टिसूरिजी बाल्यकाळथी ज प्रतिभासम्पन्न हतां. एक दिवसमां हजार श्लोक कण्ठस्थ करवानी तेमनी शक्ति हती. आम राजा तेमनो परम भक्त हतो. धर्मराजानी सभामां तेमणे बौद्धवादी वर्धनकुंजरने जीत्यो हतो, तेथी ‘वादिकुंजरकेसरी'नु बिरुद तेमणे मेळव्यु हतुं. तेमणे मथुराना वाकपति नामना शैवयोगीने जैन बनाव्यो हतो. तेओ अखंड ब्रह्मचारी हतां, ने ते माटे तेमनो रसनेन्द्रिय उपर खूब काबू हतो. तेमणे यावज्जीव छ विगईनो त्याग कर्यो हतो. तेमनुं अपर नाम भद्रकीर्ति हतुं. तेओ ‘ब्रह्मचारी गजवर' अने ‘राजपूजित' ए बे बिरुदोथी पण विभूषित हतां. ३. श्री शीलांकाचार्यजी तेओ विक्रमना दशमां सैकामां थयां. तेओए अगियारे अंग उपर न्याय अने For Private and Personal Use Only

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