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February-2017 तेमनी न्याय लखवानी शक्ति अपूर्व हती. ते विषयमां तेमनी बनावेल उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति (पाईयटीका) पुष्टि आपे छे.टूंकमां सचोटपणे लखq ए एमनी लेखन शैलीनी विशिष्टता छे. आटीकाने आधारे वादि देवसूरिजीए सिद्धराजनी सभामां दिगम्बर वादी कुमुचन्द्रने पराजय आप्यो हतो. 'जीवविचारप्रकरण' अने 'चैत्यवंदनमहाभाष्य'ना कर्ता पण आ ज शान्तिसूरिजी हशे के बीजा? ते विचारणीय छे. तेमना गुरुनु नाम विजयसिंहसूरिजी छे. ९. श्री जिनेश्वरसूरिजी
तेमनो समय १०८२ थी १०९५ आजुबाजुनो छे, कारण के तेटला समयमां बनावेल तेओना ग्रन्थो विद्यमान छे. ते समये पाटणना तख्त पर दुर्लभराज राज्य करतो हतो. तेनी सभामां तेओर्नु सारुं मान हतुं. तेओए श्री हरिभद्रसूरिजीना ‘अष्टक प्रकरण' उपर वृत्ति रची छे, जे अनेक न्यायविचारोथी पूर्ण छे. तेमां शुद्ध देव, मूर्तिपूजा, मुक्ति वगेरे घणा विषयो तर्क दृष्टिथी चा छे अने प्रमाणलक्षण' नामनो न्यायग्रन्थ स्वोपज्ञवृत्ति सहित रच्यो छे. १०. श्री सूराचार्यजी
तेमनो सत्तासमय ११मी सदीनो छेवट भाग अने बारमी सदीनी शरूआत छे. तेओ शब्दशास्त्र, प्रमाणशास्त्र तथा साहित्यशास्त्र वगेरेमां निपुण हतां. पोतानी शक्ति माटे तेमने मान हतुं. तेमनी पासे अनेक शिष्यो अभ्यास करतां हता. तेमनो ताप अपूर्व हतो, शिष्यनी भूल थाय के तरत ज मार पडतो अने एम थतां हमेश ओघामां राखवानी लाकडानी एक दांडी तूटी जती हती. गुरुमहाराजना मर्म वचनथी भोजराजानी सभामां गया हतां अने सर्व पंडितो उपर विजय मेळव्यो हतो. प्रथम तो भोजराजा तेओना उपर प्रसन्न थयो हतो पण पाछळथी तेओना नग्न सत्य कहेवाना स्वभावथी क्रोधित थयो हतो. भोजराजा सर्वदेर्शनोने एकठां करवानो प्रयत्न करतो हतो. ते न थई शके तेम तेमणे तेने समजाव्यु हतुं. भोजव्याकरणमां भूलो बतावी हती. छेवटे भोजे तेमने देहकष्ट आपवा विचार को हतो, परंतु धनपालनी गोठवणथी तेओ सुखे पाटण पहोंची गया हतां. 'नेमिनाभेय-द्विसंधान महाकाव्य' तेमनी काव्यकृति छे. भीमदेवनी सभामां तेमनुं सारं मान हतुं. भीमदेवना मामा द्रोणाचार्यना तेओ शिष्य हतां अने संसारपक्षे भत्रीजा हतां.
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