Book Title: Shrutsagar 2017 02 Volume 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 SHRUTSAGAR February-2017 संस्कृत ग्रंथ तिलकमंजरी है। यह ग्रंथ राजा भोज को अत्यंत प्रिय था। धनपाल की भाषा का गौरव करते हुए पंडितों का कथन यहाँ सत्य ही सिद्ध होता है कि- “धनपाल के सरस वचन और मलयगिरि के चंदन से भला कौन संतुष्ट न होगा?” पूर्वकाल की बात है मालवदेश की धारा नगरी में विद्यानुरागी भोजराज की सभा में ५०० पंडितप्रवरों के साथ विद्यागुणगोष्ठी हुई। उस सभा में पंडित धनपाल ने एक ही श्लोक के द्वारा मनुष्यजीवन का लक्ष्य बताया था । यदि मनुष्य ने विद्या, तप, दान, धर्म, ज्ञान, शील आदि गुणों में से किसी भी एक गुण को धारण नहीं किया हो तो वह इस मर्त्यलोक में भाररूप होकर मृग आदि से भी गया बीता होता है। यहाँ पर कवि ने विद्याकौशल्य के द्वारा प्रसंगोचित क्रमशः मृग, गाय, तृण, वृक्ष, धूल, श्वान, गर्दभ, कौवा, ऊंट और भस्म इन १० दृष्टांतों के द्वारा यह सिद्ध किया है कि अनुपयोगी मानी जानेवाली वस्तुएँ भी अपने किसी न किसी गुण के कारण समाज के लिए उपयोगी होती हैं, जब कि निर्गुणी व्यक्ति किसी काम का नहीं होता, उसकी तुलना पशु या धूल आद से भी नहीं हो सकती। अन्योक्ति/व्यंगोक्ति के माध्यम से इस तथ्य को विद्वत्तापूर्वक तार्किक रूप से प्रतिपादन करने का सफल प्रयास किया है। इस कृति के अनुवाद हेतु मूल संस्कृत में प्रकाशित मुद्रित पुस्तक- (१) जैन पाठशाला-अहमदाबाद, (२) जैना पब्लिशिंग कंपनी-दिल्ली एवं स्थानीय हस्तप्रत भंडार आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की (३) ३२६५५ व (४) ४९७२४ इन दो हस्तप्रतों का भी प्रसंगोपात उपयोग किया गया है। इन चार सन्दर्भो के उपयोग में यथास्थानों पर प्राप्त पाठांतरों के लिए अग्रलिखित संज्ञाएँ दी गई हैं। यथा- मुद्रित पुस्तक क्रमांक-१ हेतु 'क' संज्ञा, क्रमांक-२ के लिए 'ख, क्रमांक-३ में ह.प्र.नं. ३२६५५ को 'ग' एवं ह.प्र.नं. ४९७२४ को 'घ' संज्ञा दी गई हैं। संस्कृतानुरागियों के लिये तो यह संवाद रोचक है ही, किन्तु इस दृष्टांत को पढ़कर जनसामान्य भी इस मूलकथा के उद्देश्य को समझने में सफल हो एवं संस्कृत कथासाहित्य में छिपे हुए उपदेशप्रद ज्ञान को जानने में अपनी अभिरुचि बढा सके, इसलिये सरल हिन्दी भावानुवाद सहित यह प्रसंग प्रस्तुत किया जा रहा है। श्रीभोजराजसभायां, पंचशतपण्डितपूरितायां, विद्यागुणगोष्ठ्यां जायमानायां। श्रीधनपालपंडितेन, जिनधर्मरतेन, राज्ञोऽग्रे प्रोक्तम् श्रीभोजराज की सभा में पाँचसौ पंडितों के साथ आयोजित विद्यागुण गोष्ठी में पंडितश्रेष्ठ जिनधर्मानुरागी श्रीधनपाल ने राजा के समक्ष कहा For Private and Personal Use Only

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