Book Title: Shrutsagar 2016 06 Volume 03 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय डॉ. उत्तमसिंह श्रुतसागर का यह नूतन अंक आपके करकमलों में सादर समर्पित करते हुए अपार आनन्द की अनुभूति हो रही है। इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक के तहत आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा लिखित 'जीर्ण ग्रन्थोद्धार' नामक लेख पुनः प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें तत्कालीन ग्रन्थागारों तथा उनमें संगृहीत ग्रन्थों की दशा एवं दिशा का उल्लेख करते हुए भविष्य के प्रति चिन्ता व्यक्त की गई है। इस लेख के माध्यम से प्राचीन श्रुतसंपदा के संरक्षण, संपादन एवं प्रकाशनार्थ समाज को अति सुन्दर एवं प्रेरणात्मक संदेश दिया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रवचनांशों की पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के तहत संकलित किया गया है। अप्रकाशित कृति प्रकाशन योजना के तहत इस अंक में पं.श्री मञ्जुनाथ भट्ट द्वारा संपादित घोघापुरमण्डन श्रीनवखण्डा पार्श्वनाथ स्तवन' नामक प्राचीन कृति प्रकाशित की जा रही है। संस्कृत भाषा में निबद्ध यह पद्यात्मक रचना पूज्यश्री प्रतिष्ठासोमगणि द्वारा रचित है। प्रायः अद्यपर्यन्त अप्रकाशित इस कृति का संपादन एवं प्रकाशन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा के हस्तप्रत भण्डार में संगृहीत प्राचीन हस्तप्रत के आधार पर किया जा रहा है। इसके साथ ही प्रसिद्ध जैनकवि श्री रूपविजयकृत एक और अप्रकाशित रचना ‘अजितनाथजिन जन्माभिषेक कलश' प्रकाशित की जा रही है। मारुगुर्जर भाषा में निबद्ध यह पद्यबद्ध रचना अत्यन्त रसमय-मधुर-सुन्दरतम वगेय है। इस कृति का संपादन प.पू. साध्वीजी श्री गुणदक्षाश्रीजी म.सा. ने किया है। ___ प.पू. मुनिश्री सुयशचंद्रविजयजी म.सा. द्वारा संकलित व संपादित लघुशिल्पकृतिओमां पगला' नामक लेख के तहत कल्पसूत्र की द्वितीय वाचना (स्थविरावली) में उल्लिखित महापुरुषों के पगला (चरणकमल) चिह्नांकित प्राचीन शिलापट्ट का सुन्दर एवं संशोधनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। पूज्यश्री ने इन महत्त्वपूर्ण शिल्पाकृतिओं का संकलन एवं संपादन कर प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर को प्रकाश में लाने का सुन्दर प्रयास किया है। पुनः प्रकाशन योजना के तहत इस बार 'बालशिक्षा' नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। पण्डित श्री लालचन्द भगवानदास गांधी द्वारा संपादित यह लेख 'पुरातत्त्व' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। ___ आशा है इस अंक में संकलित सामग्री द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only

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