Book Title: Shrutsagar 2016 06 Volume 03 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
जून-२०१६ भंगारदर्पणथालपात्री सप्रतिष्टक सार ए, अरति वारी आरती करी, मंगलदीप उतार ए। देव केइ गज्जे केइ वज्जे केइ नच्चे फार ए, इम स्नात्र करी भवजलधि तरी सम पामे हर्ख अपार ए ॥४॥ जिनराज जिनजननी समीपे, लावी थापे ताम ए, मणिरूप कांचन कोडी बत्रीस कोश भरे अभिराम ए। उद्घोषणा करी इन्द्र नंदीसरे जई अभिराम ए, अट्ठाई महोच्छव करी, पोत्या इन्द्र आपणे ठाम ए॥५।।
॥ ढाल॥ परभाते नृपने जइ भाखे दाशि प्रियवदा नाम, राजन सुत प्रसव्यो, कुलमंडन देखी ए अति अभिराम । ते सुणी रोमांचित, नृप आपे, मुगट तजी आभर्ण, कारागार विमोचन वर्धन मनोन्मान सवर्ण ॥१॥ वर्धापन कोटी देता लेता हर्ष उमंग ए, घर घर तोरण मंगलकुंभा नाटिक गीत सुचंग ए। रंग अभंग महोदय कमला, विमला घर घर द्वार, प्रगटी तव थापे, जग जस व्यापे जनता (जनने) हर्ष अपार ॥२॥ अजितनाथ अरिहा अविनाशी, गुणराशी भगवंत, तस जन्म महोच्छव गातां, लहीये कमला कोडी अनंत । गुरू सत्य कर्पुर खिमा जिन उत्तम पद्म विजय अभिराम, रुपविजय तस शिष्य कहे जिन अजीतनाथ गुणधाम ॥३॥ ॥ इति श्री अजितनाथजिन जन्माभिषेकः॥ कलश ॥समाप्त॥ छ।
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