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श्रुतसागर
जून-२०१६ कवि द्वारा दी गई उपमाएँ, अनुप्रासबद्ध, सुंदर व शब्दसंरचनायुक्त इस कृति का पठन व मनन वाचक के मन को अद्भुत शान्ति प्रदान करता है.
कृति में एक विशेषता यह भी है कि इसमें चारूपजी, मंगलपुर, खंभात, जीरापल्ली, रावणपुर, नागपुर आदि तीर्थों का भी उल्लेख किया गया है.
कर्ता परिचय- कर्ता के बारे में कृति में कोई उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन प्रतिलेखन-पुष्पिका में किये गए उल्लेख से प्रतिष्ठासोमगणि कर्ता के रूप मे माने जाते हैं.
पुष्पिका में लिखे गये रचना वर्ष १५०१ व अन्य प्रमाणों से संभव है कि सोमसुंदरसूरि के शिष्य व प्रसिद्ध कृति सोमसौभाग्य काव्य के कर्ता भी इस कृति के कर्ता हों।
प्रत परिचय- आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर कोबा ही जैन एवं प्राच्यविद्या शोध ग्रन्थागार में विद्यमान यह प्रत ५०४६७ नंबर पर दर्ज है जो कागज पर हस्तलिखित है। इसमें ४ पत्र हैं, जिनमें काली स्याही से प्राचीन देवनागरी लिपि में कृति लिपिबद्ध है।
इस प्रत के पत्रों में कालप्रभाव के कारण मध्य भाग में चार-पाँच अक्षरों का नाश भी हुआ है। प्रत्येक पत्र में तेरह पंक्तियाँ हैं एवं प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४० से ४५ अक्षर हैं।
प्रत के आदि में मंगलसूचिका(भलेमींडी) तथा मध्य भाग में मध्यफुल्लिका प्राप्त होती है। अक्षर सुन्दर और सुवाच्य हैं तथा पत्र की प्रारम्भिक पंक्ति में 'श्री' इत्यादि वर्गों में कलात्मक अलंकारिक मात्राओं का प्रयोग किया हुआ है। ___ कृति के अन्त में प्रतिलेखन-पुष्पिका नहीं मिलती है, किन्तु प्रतिलेखक ने लिखा है कि “संवत् १५०१ वर्षे प्रतिष्ठासोमगणिभिर्व्यरचि” इससे संभव है कि स्वयं रचयिता द्वारा या उनके शिष्यादि द्वारा यह प्रत लिखी गई हो और लेखन वर्ष भी १५०१ हो । प्रत की लंबाई-चौडाई २५४१०.०५ से.मी. है।
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