Book Title: Shrutsagar 2016 03 Volume 02 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१६ हीराणंदसूरिकृत दशार्णभद्र रास लिप्यंतर- किरीटभाई के. शाह ॥ई। वीर जिणेसर पय नमी ए, समरीय समरीय सरसति देवि; दशनभद्र गुण गाइसिउं ए, हीअडलूइ हीअडलूइ हरख धरेवि के; वीर जिणेसर पय नमी ए ॥१॥ पय नमीय वीरह, दशनभद्रह चरिअ चरिसु (रचिसु) सोहामणुं; जंबुदीवह भरहखित्तिअ, दशनपुर रुलिआमj; दशनभद्र तिहां राज पालई, इंद्र जामलि जाणीइ; दशन गिरि वनि वीर पुहुता, समोसरण वखाणीइ ॥२॥ रयण कणय गढ रूपमई ए, कोसीसां कोसीसांनी ओलि कि; मणिमय तोरण मंडिआ ए, चिहुं पखि चिहुं दिसि पोलि कि; रयणकण गढ रूपमइ ए।।३।। रूपमइ च्यारिइ कलश पोलिहिं, धजादंड कलस लहलहइं; मृगनाभि अगर कपूर केसर, कुसुम चंदन महमहइं; दोदो कि दोंदों दुदुभि सद्दहि, देव दुंदुहि द्रहद्रहइं; चउसट्ठि सुरवर नाग नरवर, असुर किंनर गहगहइं ॥४॥ वीर जिणंद समोसरिआ ए, निरखीअ निरखीअ वनि वनपाल के; नयरि वधावउ आविउ ए, निसुणीअ निसुणीअ दशन भूपाल के; वीर जिणंद समोसरिआ ए॥५॥ समोसरिआ सणिन स्वामी, लाख सोवन दिद्धओ; वीर साहमु थई ऊठी, भाव वंदन किद्धओ ॥६॥ हुं तीणि रीतिइं वीर वंदिसु, जीणइ कुणहिं न वंदिआ असिउं जाणी हृदय अंतरि, राउ अति आणंदिउ ॥७॥ 1. पंक्ति-हारमाळा 2. पोल-शेरी 3. कस्तूरी For Private and Personal Use Only

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