Book Title: Shrutsagar 2016 03 Volume 02 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 15 नयरिहिं पडहु वजावीउ ए, वीरह वंदण रेसि के; घरि घरि करइं वधामणां ए, आवओ आवओ नव नवे वेसि के; पायक नरिंदह सहस सोलइ, सीसि सीकिरि सुंदारा; सहस सोलइ धरइ धयवर', पंच मेघाडंबरा; धवल मंगल बाल बोलइ, करइ रंगि वधामणां; पूरिआ फूल पगर पंथिहिं, सहस एक सुखासणा ॥११॥ ईण परि राजा चालिओ, च्यारइ च्यारइ चमर सिरि छत्र के; दीजइ कंचण मागता ए, नाचइ नाचइ ए नवरंग पात्र के; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वजावीआ द्रहद्रह द्रम कि, क्रेंद्रे ढोल त्रंबक दडदडी; अढार सहस सुभद्र जाती, मंडिआ मयगल गुडी; चउवीस लक्ष नु(तु)खार सज्झा, तुच्छ कन्न कलाईआ; सहस एकवीस रथ धडुक्कर, रजई अंबर छाई ॥९॥ कोडि एकाणुवइ पायकु ए, चउसठि चउसठि राणी घाट के; शेत्र पटोली पहइरणिइ उढणि उढणि नवरंग घाट कि; कोटि एक० ॥ १०॥ चालीउ चतुरंग दलइं, देखी आपणी लखिमी घणी; मदइं मानइ त्रिण समाणी, लाछि सवि तिहुअण तणी; राय समोसरणि आवी, हस्त कंधई ऊतरी; वीर वांदी ठामि बइठउ, त्रिणि प्रदिक्षणा देई करी ॥१३॥ 1. पटोळु-ओढणु 2. धजावाळं छत्र 3. धजा फरकावनार March-2016 निरखिउं सुरवर सयल सुरनर, असुर रिद्धिइं आपणी; समकाल जिणवर जात्रि आवई, तोइ भक्ति नही घणी; For Private and Personal Use Only नयरि हि०॥८॥ इणि परि राजा० ॥१२॥ ईणइ ईणइ अवसर निरखींउ ए, इंद्रिहिं इंद्रिहिं अवधिहिं नाणि के; भूपति भगति भली करइ ए, दूषण दूषण आणइ माण के; ईणइं अवस०॥१४॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36