Book Title: Shrutsagar 2016 03 Volume 02 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR 17 नाटक संख्या कोडिकोडां पंचसइं छत्रीसयां, कोडि सत्यासीअ लाख नवसहस एकवीसयां ॥२२॥ www.kobatirth.org निरखतउ भूपति त्रिमुख चउमुख सिंह गज मुख किंनरा, एक आसणि करइं हयवर, एक आसणि गयवरा, एक आसणि हंस सारस, एक धवल धुरंधरा, एक आसणि महिष सूअर, एक आणि विसहरा ॥२४॥ दशनभद्र मनि चीतवइ ए, देखीअ देखीअ इंद्रनी रिद्धि के, आपणी रिद्धि त्रिणि समी ए, जोअउ गयवर रिद्धि के । एतलां एतलां नाटक निरखतउ ए छत्रीस छत्रीस लाख विमान के, सामीभगति दिखाडतउ ए, आविउ आविउ जिहिं वर्धमान के, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिंतवइ धन धन रूप सोहग्ग', धन अंतेअउर तेह तणां, धन छत्र चामर रिद्धि, धन धन निव्व नवरसि अति घणां ए, वीर ऊपरि इंद्रनी धन, भक्ति शक्ति अनोपमी, भगवंत पूजा माण मेल्हइं, तोइ आपिसु नवि नमी ॥२६॥ राउ भणइ मइ आपणी ए, रिद्धिहिं रिद्धिहिं लीधर वाद के, लोहकरी तिणि आदरी ए, संजम संजम सिरि उगाध के, आपणी रिद्धिहिं इंद्र जाणी, दशनभद्र मई जुत्तउं", पणि पाय लागी इंद्र नमिउ, वयण धनधन बोल ए, अवर तिहूअण तुडि चलावई, एह माण न चल्ल ए ॥२८॥ 1. आसन 2. सौभाग्य-भाग्यशाळी पणु 3. लोभ करी 4. जोडायल March-2016 For Private and Personal Use Only एतला० ॥२३॥ दशनभद्र० ॥२५॥ इणि परि सुरनर गुण थुणइं ए, पुहुतउ सोहम ठामि के, दशनभद्र रिषि तप करइं ए, सिद्धउ सिद्धउ केवलनाण के, इणिप० ॥२९॥ राउ० ।।२७।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36