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श्रुतसागर
काव्य के अलंकार होते हैं ।
भक्तामरस्तोत्र का अलंकारशास्त्रीय मूल्यांकन करने के उपरांत इस छोटे से काव्य ग्रंथ में शब्द एवं अर्थ दोनों प्रकारों के अलंकारों की प्रचुरता दिखाई देती है। अर्थालंकारो में उपमा दृष्टांत उत्प्रेक्षा स्वभावोक्ति निर्दशना काव्यलिंग अर्थान्तरन्यास चित्रालंकार दृष्टांत अलंकार आदि प्रमुख हैं । यद्यपि भक्तामरस्तोत्र के प्रत्येक छंद में अनेकों अलंकार हैं एवं एक-एक अलंकार का अनेकों स्थान पर प्रयोग किया है तथापि विस्तार के भय से हम कुछ छंदों के माध्यम से विभिन्न अलंकारों का रसास्वाद करेंगे ।
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मार्च-२०१६
उपमा अलंकार उपमा अलंकार संस्कृत का सर्वप्रमुख अलंकार है ‘उपमाकालिदासस्य’ तो प्रसिद्ध ही है । भक्तामर स्त्रोत में उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग दृष्टव्य है
निर्धूमवर्तिरपवर्जित तैलपूरः
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कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रगटीकरोषि | गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां दीपोपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः ॥ १६॥
हे जिनेन्द्रभगवान आप तैल वाती एवं घुँए से रहित तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले अलोकिक दीप हो । जो पहाड़ों को चलायमान करने वाली वायु से भी चलित नहीं होता । इसमें भगवान की तुलना आलौकिक दीप से करते हुए उस उपमा की सिद्धि भी की है ।
दृष्टांत अलंकार- आचार्य मम्मट इस अलंकार को परिभाषित करते हैं किदृष्टान्तः ‘पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम्' तुल्य विषयों का बिम्बप्रतिबिम्ब होने पर दृष्टांत अलंकार होता है इस स्तोत्र में इसका सुंदर प्रयोग प्राप्त होता है -
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अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम त्वद्भक्तिरेव मुखरी कुरुते बलान्माम् ।
यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौि
तच्चारु चूतकलिका निकरैक हेतुः ॥६॥
जिस प्रकार चैत्रमास में अगर कोई कोयल मधुर स्वर में बोलती है तो