Book Title: Shrutsagar 2016 03 Volume 02 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मार्च-२०१६ श्रुतसागर 26 विशेष का सामान्य द्वारा समर्थन होता है वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है । " इसका प्रयोग है - सोहं तथापि तव भक्ति वशान्मुनीश कर्तुं स्तवं विगत शक्तिरपिप्रवृत्तः । प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं नाभ्येति किं निज शिशोः परिपालनार्थं ॥५॥ हे मुनीश मैं अल्पशक्ति वाला होने पर भी आपकी भक्ति में उसी प्रकार प्रवृत्ति कर रहा हूँ जिस प्रकार हिरणी अपने शिशु को बचाने के लिए अपने सामर्थ्य को भूलकर क्या सिंह के सन्मुख नहीं जाती अर्थात् अवश्य जाती है। इस पद में प्रथम विशेष कथन करके फिर हिरणी के माध्यम से सामान्य का निर्देश किया है अतः यहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार है । निर्दशना अलंकार - जहाँ वस्तु का असम्भव संबंध उपमा के माध्यम से बताया जाता है वहाँ निर्दशना अलंकार होता है। इसका सुंदर प्रयोग है - वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र शशांक कान्तान् कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्याः । कल्पान्तकालपवनोद्धत नक्रचक्रं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को वा तरितुमलमम्बुनिधिं भजाम्याम् ॥४॥ हे चंद्र जैसी कान्ति वाले देव आप ऐसे गुणसमुद्र हो जिसका वर्णन करने में देवगुरु बृहस्पति भी समर्थ नहीं है । जिस समुद्र में भयंकर लहरें उठ रहीं हो एसे मगरमच्छ से भरे समुद्र को अपने हाथों से पार करने में कौन समर्थ है। इस पद में को वा तरितुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् इस पंक्ति में निर्दशना अलंकार है। स्वाभावोक्ति अलंकार - जहाँ स्वाभाविक वर्णन से रसोत्पत्ति होती है वहाँ स्वभावोक्ति अलंकार होता है यथा - स्वाभावोक्ति अलंकार होता है यथा - 1. सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते, यत्तु सोऽर्थान्तरन्यासः साधर्म्येणतरेण वा 2. निर्दर्शना अभवन् वस्तु संबंध उपमापरिकल्पकः For Private and Personal Use Only

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