Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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॥ दोहरो ॥
भववीस सात रसाल, सुदि आषाढ छठ्ठि च्यवन । जन्म क्रीडा नीसाल, पाणीग्रहण दिक्षा कथन
॥ ३४ ॥ सर्वगाथा - ३५ ॥
इति श्री महावीर पुरुषोतम स्तवनारुप लोकभाषया सिल्लोके सप्तविंशति भव चवन कल्यांणक वर्णनो नाम प्रथम अधिकार समाप्त ॥ १ ॥
श्री शारदाय नमः
श्री वीर प्रणमी आगलि अधिकार, कहुं ते भावे सुणयो नरनारि । चैतरसुदि तेरस त्रिण जगनाथ, जनम्या जयकारी शिवपुर साथ छपन्न दिशा कुमरी तव आवें, जन्म महोच्छव करें मन भावें । शक्र सिंहासन एवें चलियो, अवधि स्युं जोई हर्षमां भलियो
हरिणेगमेषी तेडी कहें देव, जावं छे करवा वीरनी सेव । घंटा सुघोषा योजन प्रमाण, ताडें त्रिणवार करवा सुर जांण लाखयोजननुं पालक विमांन, रचिउं रडिआलु शोभा असमांन । बहु हर्ष इंद्र आवे, सुरवृंद साथें अधिक सोहावें
प्रदक्षिण देई जिन जननी पाय, नमी कहें माता हुं सुरराय । जन्म महोच्छव तुज सुत केरो, मेरुगिरि शृंगे करस्युं भलेरो करि प्रतिबिंब जिनवर केरुं, मातानें पासें मुकें भलेरुं । कर संपूटमांहि तीर्थंकर लेई, पंचरूप कीधां उपयोग देई नाटिक करंतां हर्ष धरंतां, मेरुगिरि शृंगिं सुरपति पहुता । दश वैमानिक भवनपति वीस, ज्योतिषि दुर्गा व्यंतर बत्रीस
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चउसट्ठि इंद्र मिलीया सनूरा, मांहोमांहिं ते हर्षस्युं पूरा । बावनाचंदन फूल चंगेरी, पूजा सामग्री आणि भलेरी
पणवीस ज्योयण तुंग विराजे, बार योयणनो विस्तार छाजें । एक योयणनुं नालुंडं सार, सट्ठि लख इग कोडि अट्ठ प्रकार
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नवम्बर २०१५
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