Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ मञ्जुनाथभट्टकृत ॥ ॥ शारदाष्टकम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूल- वि. मञ्जुनाथ भट्ट अनुवाद - विशाल जोशी कोबाज्ञानसुमन्दिरेऽजयनिधौ पद्माब्धिसूरीगृहे, शृङ्गेरीपुरवासिनीमभयदां श्रीशङ्कराराधिताम् । देवीप्रेरितमानसो मनसिजां कल्याणवाणीमहम्, वन्दे तां मनसा करेण विमलां ध्यानैश्च राराजिताम् ॥ [शार्दूलविक्रीडित] अर्थः- इस पवित्र शारदाष्टक की रचना राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा स्थापित कोबा, (गांधीनगर, गुजरात) क्षेत्र में स्थित ज्ञानमन्दिर (library) में उनके ही आशीर्वाद से तथा उनके कृपापात्र आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी म. सा. के सान्निध्य में हुई है । इस अष्टक की मुख्य आराध्य देवी माँ शारदा हैं, जो श्रृङ्गेरी (चार पीठों में से एक) के भगवत्पाद श्री शङ्कराचार्यजी से आराधित हैं। यह कल्याणकारी वाणी मेरे मनमें माँ शारदा की ही मानसिक प्रेरणा से स्फुरित हुई। जिसके फलस्वरूप इस अष्टक की रचना हुई । वाग्देवी ऐसी सद्वाणी का प्रयोग मुझसे बार-बार करवाएँ इसी प्रार्थना के साथ मैं, मेरे मन में स्थित माँ शारदा को मानसिक ध्यानहस्तों से वन्दन करता हूँ । For Private and Personal Use Only यां भावयामि निरतं मम शोकहर्त्रीम्, देवेषु कल्पलतिकां मयि सन्निविष्टाम् । सर्वस्य पापशमने धृतचापहस्ताम्, तां पूजयामि जननीं करपल्लवेन ||१|| [वसन्ततिलकायाम्] व्याकरणविशेषः- शोकहत्रम् - शोकः हरणं शीलमस्याः सा शोकहत्रीं (हृञ् हरणे इति धातुः) ताम्, धृतचापहस्ताम् - धृतः चापः हस्ते यस्याः सा धृतचापहस्ता ताम् । अर्थः- मैं उसकी भावना करता हूँ, जो निरंतर मेरे शोक को नाश करनेवाली

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