Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 . श्रुतसागर नवम्बर-२०१५ नीतिमान! आप अपनी पवित्र वाणी को अधिक पवित्र बनाने के लिये, जो कीर्तीप्रदाती है, जो कोमलमयी है, उस माँ शारदा का ध्यान करके, उसको अनुमोदित करने हेतु उनका स्तवन कीजिए, सद्विद्यारूपी जप कीजिए और अपने सद्ज्ञानरूपी भक्तिमय पुष्पों से सकलशास्त्रतरङ्गिणी माँ सरस्वती का अपने करपल्लव द्वारा पूजन करें। शारदाऽष्टकमिदं पुण्यं ये पठेयुस्सदा मुदा। शब्दब्रह्म समाप्यैव रमन्ते ब्रह्मणा सह ॥ व्याकरणविशेषः-समाप्यैव इत्यत्र आप्लु गतौ इति धातुः। अर्थः- इस पवित्रमय शारदाष्टक का जो स्वात्मानंद से पठन करेगा वह माँ शारदा के आशीर्वाद से शब्दरूपी ब्रह्म को प्राप्त करके ब्रह्म में समन्वित हो जाएगा। विशेषः- पूर्वत्र सर्वेष्वपि श्लोकेषु अन्तिमचरणे करपल्लवेन इति प्रयोगः दृश्यते। अस्य विग्रहः – 'पल्लवी करौ यस्य सः करपल्लवः, तेन इति' । अत्र करः दानस्य सङ्केतमिति मत्वा प्रयोगः कृतः, अर्थात् इदं सम्पूर्णमपि शरीरं श्रीशारदाम्बायै अर्पणमिति बुद्ध्या अतीव भक्त्या पूजयामि इति तात्पर्यम्। तथा च आदौ मङ्गलपद्ये अजयनिधौ (अजय एव निधिः यस्मिन्गृहे सः अजयनिधिः, तस्मिन्, अजयनिधौ) श्रीपद्मसूरीगृहे, पद्मसागरसूरयः एव गृहम्, तस्मिन्गृहे अजयसागरसूरयः एव निधिः इति मत्वा एवं प्रयोगः कृतः, अर्थात् पद्मसागरसूरि अजयसागरसूरि इत्याचार्याणां नामस्मरणेन तेषामनुग्रहप्राप्तिः पुण्यप्राप्तिश्च श्लोकेन सूचिता ॥ शारदासन्निधौ भक्त्या, कोबाज्ञानसुमन्दिरे । नेत्रर्षिरन्ध्रकर्णेऽब्दे, पूर्णेन्दौ शनिवासरे॥ रक्षापर्वणि यत्नेन, मञ्जुनाथेति शर्मणा। श्रीमतीश्रीधराणाञ्च, पुत्रेण रचिता मुदा॥ इस अष्टक की रचना वि.सं. २०७२ नेत्रर्षिरन्ध्रकर्णेऽब्दे (संख्यासूचक शब्द प्रयोग) पूर्णिमा के शनिवार को रक्षापर्व (श्रावणमास) के शुभावसर पर श्रीमती तथा श्रीधरजी के पुत्र मञ्जुनाथ भट्ट ने अपने भक्तिमय तथा ज्ञानपूर्ण प्रवाह से माँ सरस्वती के सान्निध्य में कोबा ग्रामविशेष क्षेत्र के ज्ञानमन्दिर (library) में की है। For Private and Personal Use Only

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