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SHRUTSAGAR
27
November-2015
है, जो मेरे हृदय में स्थिर होकर कल्पतरु के समान सर्वस्व देनेवाली है, जिसने पाप का शमन करने हेतु अपने हस्त में धनु धारण किया हुआ है। उस माता (सरस्वती) का करपल्लव द्वारा पूजन करता हूँ ।
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मार्गेषु शुक्लपदवीं हृदि दर्शयन्तीम्, शक्तिं सयुक्तिफलकं नृषु सेचयन्तीम् । मन्दस्मितां च ललितां कमलासनस्थाम्, तां पूजयामि जननीं करपल्लवेन ॥२॥
व्याकरणविशेषः- शुक्लपदवीम् - शुक्लस्य पदवी शुक्लपदवी ताम्, कमलासनस्थाम्-कमलञ्च तदासनञ्च कमलासनम्, कमलासने तिष्ठति या सा कमलासनस्था ताम् ।
अर्थः- चञ्चलित मन के अनेक विचलित मार्गों में से जो शुभ्रमार्ग का मार्गदर्शन हृदय में करती है, मनुष्यों में युक्तिसहित फल के स्वरूप शक्ति का सञ्चार करती है, जो कमलासन पर स्थित है, जिसके मुखारविन्द पर सदैव मन्द स्मित छलकता है और जो अपनी कृपा से हमारे मन को ललित करती है । उस माता (सरस्वती) का करपल्लव द्वारा पूजन करता हूँ ।
शारञ्च दुःखजनकं हि निवारयन्तीम्, लोकेशपुष्करपदे च सदा लसन्तीम् । वीणानिनादनिनदेन मनोहरन्तीम्,
तां पूजयामि जननीं करपल्लवेन ॥३॥
व्याकरणविशेषः- लोकेशपुष्करपदे - लोकेशस्य पुष्करः लोकेशपुष्करः, लोकेश - पुष्करस्यैव पदं तस्मिन्, वीणानिनादनिनदेन- वीणायाः निनादः वीणानिनादः, वीणानिनादस्य निनदः वीणानिनादनिनदः तेन ।
अर्थ::- अज्ञान (शारं) का खण्डन करने से जो शारदा नाम से प्रसिद्ध है, जो अज्ञानता से उत्पन्न दुःखों का निवारण करनेवाली है, जो सदा सर्वदा ब्रह्मा के आकाश स्थान पर आनन्द से विहार करनेवाली है, वीणानाद के ध्वनि से जो हमारे मन के सन्तापों को हर लेती है, उस माता (सरस्वती) का करपल्लव द्वारा पूजन करता हूँ ।
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