Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 16 एह जांणउं हुं हुं पणि भाई, तुझ विरह मुझ पीडें दुखदाई। भाईनें वचनें बे वरस झाजां, रह्या गृहवासें छोडी गीत वाजां अवि आकासें कहें सूरवांणी, मोहदल भाजो जगगुरुनांणी । तीर्थ वरतावो त्रिभुवननाथ, जेहथी चालें शिवपुर साथ दान देवानो जेह आचार, वरह वर करें घोषणासार । त्रिण अठ्यासि कोडिनुमांन, ऐंसी लख उपरि संवत्सरी दांन देई निज हाथिं दारिद्र कापें, सुरद्रुम केरे शोभा उथापें । राज्य ऋद्धि सवि छोडी परिवार, बेंठा शिबकाई हर्ष अपार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धारथ वनमां वृक्ष अशोक, मागसिर वदि दशमें सुर-नर थोक । संयम साथिं मनपज्जवनांण, आगलि सुणयो विहार मंडांण ॥ दोहरो ॥ नाथ थया षटकायना, त्यजी सावद्य व्यापार । विहार केवलज्ञानं छें, हवें सुणयो अधिकार प्रणमी महावीर विहार मंडाण, कहुं आगलि ते सुणो सुजांण । परिवार पूछी कुमारगांम, आव्या प्रभु मुहुरत दीवस जांम वृषभ भलावी गोवाल जाय, आव्यो न दीठा आकुल थाय । गोपव्यां जांणी करें उपसर्ग, वज्रीइं वार्यो आवी ते गर्ग वज्र तव विनवे त्रिभुवन इश, उपसर्ग मोटा बार वरीस । रहुं तुम पासें तेह निवारुं, जगगुरु बोल्या ए तो न सारं थयुं न था थातुं पणि नथी, अरिहानें केवलग्यांन साहायथी । मसिआई व्यंतर सिद्धारथ नांम, मुकिनें इंद्र त्रिदिवि जगां For Private and Personal Use Only नवम्बर २०१५ ॥२२॥ ॥२३॥ इति श्री माहावीर पुरुषोतम स्तवनारुप लोकभाषया सिल्लोके जन्मकल्याणक जन्मोत्सव आंमलक्रीडा लेखशाला पाणीग्रहण दीक्षा वर्णनो नांम द्वितीयोधिकार समाप्त ॥ २॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ 11211 ॥२॥ ॥३॥ 11811

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