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श्रुतसागर
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एह जांणउं हुं हुं पणि भाई, तुझ विरह मुझ पीडें दुखदाई। भाईनें वचनें बे वरस झाजां, रह्या गृहवासें छोडी गीत वाजां अवि आकासें कहें सूरवांणी, मोहदल भाजो जगगुरुनांणी । तीर्थ वरतावो त्रिभुवननाथ, जेहथी चालें शिवपुर साथ
दान देवानो जेह आचार, वरह वर करें घोषणासार । त्रिण अठ्यासि कोडिनुमांन, ऐंसी लख उपरि संवत्सरी दांन
देई निज हाथिं दारिद्र कापें, सुरद्रुम केरे शोभा उथापें । राज्य ऋद्धि सवि छोडी परिवार, बेंठा शिबकाई हर्ष अपार
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सिद्धारथ वनमां वृक्ष अशोक, मागसिर वदि दशमें सुर-नर थोक । संयम साथिं मनपज्जवनांण, आगलि सुणयो विहार मंडांण
॥ दोहरो ॥
नाथ थया षटकायना, त्यजी सावद्य व्यापार । विहार केवलज्ञानं छें, हवें सुणयो अधिकार
प्रणमी महावीर विहार मंडाण, कहुं आगलि ते सुणो सुजांण । परिवार पूछी कुमारगांम, आव्या प्रभु मुहुरत दीवस जांम
वृषभ भलावी गोवाल जाय, आव्यो न दीठा आकुल थाय । गोपव्यां जांणी करें उपसर्ग, वज्रीइं वार्यो आवी ते गर्ग
वज्र तव विनवे त्रिभुवन इश, उपसर्ग मोटा बार वरीस । रहुं तुम पासें तेह निवारुं, जगगुरु बोल्या ए तो न सारं
थयुं न था थातुं पणि नथी, अरिहानें केवलग्यांन साहायथी । मसिआई व्यंतर सिद्धारथ नांम, मुकिनें इंद्र त्रिदिवि जगां
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नवम्बर २०१५
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इति श्री माहावीर पुरुषोतम स्तवनारुप लोकभाषया सिल्लोके जन्मकल्याणक जन्मोत्सव आंमलक्रीडा लेखशाला पाणीग्रहण दीक्षा वर्णनो नांम द्वितीयोधिकार समाप्त ॥ २॥
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