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November-2015
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SHRUTSAGAR सूरपति चिंतई नीर अथाह, वीर लघु किम सहस्य प्रवाह । वांम अंगुठे वीरें गिरि चाप्यो, सूरगिरि हो सुरवृंद कांप्यो वज्रीइं जांण्यो वीर विरतंत, न लह्यो भिं मूढे बल अरिहंत। नाथ खमावी करें अभिषेक, बहुविध पूजा करीने छेक मातानी पासें मुंक्या जगनाथ, अनुक्रमि ऊग्यो जव दिननाथ । राजानें आपें दासी वधाई, राजा करें उत्सव हर्ष सवाई करी उत्सवनें दीधं अभिधान, गुणनिप्पन्न श्री वर्धमांन । नंदनवन जिम सुदु अंकुर, दिन दिन वाधिं तेज सनूर सहस अधिक अड लक्षण सोहें, रुप अनोपम सुर वधू मोहें। जीत्यो मुखें चंद्र कंचनवरण, गजगति चालें कज-सम-चरण अधर अरुण जिम सोहें प्रवलां, चंद गो सम सित दंत रसाला। केशरीलंक नाभि गंभीर, हृदय विपुलनिं सुगंधि गीर सहचर परवरीयो पुर बाहिर आवें, आमल क्रीडा तिहां सोहावें। मायि मिथ्याति जित्यो सूर धीर, वज्रीइं दीधुं नाम माहावीर आठ वरसनां थया जिनराज, भणवाने मुंके मातपिता य। चलित सिंहासन अवधिई स्युं जोई, सुरपति आवें द्विजरुपें सोई पंडितनां सांसा टाल्या तिहां सर्व, निजमंदिर पहुता वीर निगर्व । अनुक्रमि प्रभुजी यौवन पावें, रतिपति अधिकरुप सोहावें राय समरवीर पुत्री रुप धांम, चंपकवरणी यशोदा नाम । परणावें सिद्धारथ राजा मनरागें, सुख संसारिक विलसें मन भागि वरस अठावीस जाई तेणि वारि, मातपिता लहें सुर अवतार । पूण्ण प्रतिज्ञा दिक्षा अभिप्राय, नंदिवर्धननें कहइं जिनराय कहे नंदिवर्धन सुणि वर्धमान, मातपितानु दुःख असमांन । मातापितानां अनेक संबंध, कहो कुंण साथि करिइं प्रतिबंध
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