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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 14 ॥ दोहरो ॥ भववीस सात रसाल, सुदि आषाढ छठ्ठि च्यवन । जन्म क्रीडा नीसाल, पाणीग्रहण दिक्षा कथन ॥ ३४ ॥ सर्वगाथा - ३५ ॥ इति श्री महावीर पुरुषोतम स्तवनारुप लोकभाषया सिल्लोके सप्तविंशति भव चवन कल्यांणक वर्णनो नाम प्रथम अधिकार समाप्त ॥ १ ॥ श्री शारदाय नमः श्री वीर प्रणमी आगलि अधिकार, कहुं ते भावे सुणयो नरनारि । चैतरसुदि तेरस त्रिण जगनाथ, जनम्या जयकारी शिवपुर साथ छपन्न दिशा कुमरी तव आवें, जन्म महोच्छव करें मन भावें । शक्र सिंहासन एवें चलियो, अवधि स्युं जोई हर्षमां भलियो हरिणेगमेषी तेडी कहें देव, जावं छे करवा वीरनी सेव । घंटा सुघोषा योजन प्रमाण, ताडें त्रिणवार करवा सुर जांण लाखयोजननुं पालक विमांन, रचिउं रडिआलु शोभा असमांन । बहु हर्ष इंद्र आवे, सुरवृंद साथें अधिक सोहावें प्रदक्षिण देई जिन जननी पाय, नमी कहें माता हुं सुरराय । जन्म महोच्छव तुज सुत केरो, मेरुगिरि शृंगे करस्युं भलेरो करि प्रतिबिंब जिनवर केरुं, मातानें पासें मुकें भलेरुं । कर संपूटमांहि तीर्थंकर लेई, पंचरूप कीधां उपयोग देई नाटिक करंतां हर्ष धरंतां, मेरुगिरि शृंगिं सुरपति पहुता । दश वैमानिक भवनपति वीस, ज्योतिषि दुर्गा व्यंतर बत्रीस Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चउसट्ठि इंद्र मिलीया सनूरा, मांहोमांहिं ते हर्षस्युं पूरा । बावनाचंदन फूल चंगेरी, पूजा सामग्री आणि भलेरी पणवीस ज्योयण तुंग विराजे, बार योयणनो विस्तार छाजें । एक योयणनुं नालुंडं सार, सट्ठि लख इग कोडि अट्ठ प्रकार For Private and Personal Use Only नवम्बर २०१५ ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ 11811 11411 ॥६॥ 11611 ॥८॥ 11811
SR No.525304
Book TitleShrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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