Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
सहसच्यार नें उपरि शत च्यार, प्रतिबोध्या प्रभुइं वांणी गुणसार । संघ चतुर्विध प्रभुजीनो जेह, कहुं आगलि ते सुणयो धरी नेह इंद्रभूत्यादिक चउदहजार, अणगार तेहना रत्नत्रय धार । चंदनबालादिक सहसछत्रीस, साहुणी परिकर जांणो जगीस
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इगलख एगुणसहिहजार, शंख प्रमुख श्रावक परिवार । त्रिणलाख उपर सहस अढार, श्राविका सुलसा प्रमुख जयकार चउदशपूर्व्वि त्रणसें संयमीया, तेरशत ओहिनांणि उपशमीया । केवलीशत सात वेउव्वी तेता, पांचशत विपुलमति मनवेता
वादीशतच्यार सिद्धा शतसात, साहुणी शत चउद सिद्धि विख्यात । अणुंतरविमानें आठसें जाणुं, गई ठिइ कल्याण आगलि वखाणुं
परिवार वीरनो जांणो ए संत, लख पांच सहस सत्तावीस हुंत । कर्या चोमासां प्रभु जे ठांम, कहुं हवें आगलि गांमनां नांम
November-2015
अस्थिक एक चंपा पिठचंपा, थई त्रिण वर्षा रह्या अकंपा । वैशालि वाणिज्ज गांमिं थई बार, राजग्रहि चउद वर्षा निर्धार षट महिला भद्रिकादुग विवेक, एक आलंभिका सावत्थी एक । भूमिं एक ह्या प्रभू नांणी, आव्या अपापा अवसर जांणी हस्तपालनी रज्जुसभाई, अंतिम चोमासुं रह्या उच्छाहिं । सोलपोहोरनी देशनासार, प्रभुजीइं दीधी भवि उपगार तीसवरस प्रभु रह्या गृहवास, छद्मस्थ बारसाधिक उल्लास । तीस देसुण केवलीपर्याय, पाली प्रभु बिहोत्तेर वरसनुं आय कार्तिक अमांस दिवालि दिन्न, शैलेशीकरण करी अदिन्न । भवोपग्राहिक कर्म निवारी, मोक्ष पहुता वीर उपगारी
संवत अट्ठरएकिं उल्लास, पोस वदि चोथिं पुगी मन आस । प्रीति धरीनें पूरण कीधो, राजनगर मां मनोरथ सीधो
अनुभव रसमां जे रहें लाल, सुणी प्रभु वांणी थाइं खुशाल । एहवा उत्तम प्रांणीनें हेतें, कीद्धो सिलोको सूत्र संकेति
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