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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR सहसच्यार नें उपरि शत च्यार, प्रतिबोध्या प्रभुइं वांणी गुणसार । संघ चतुर्विध प्रभुजीनो जेह, कहुं आगलि ते सुणयो धरी नेह इंद्रभूत्यादिक चउदहजार, अणगार तेहना रत्नत्रय धार । चंदनबालादिक सहसछत्रीस, साहुणी परिकर जांणो जगीस 21 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इगलख एगुणसहिहजार, शंख प्रमुख श्रावक परिवार । त्रिणलाख उपर सहस अढार, श्राविका सुलसा प्रमुख जयकार चउदशपूर्व्वि त्रणसें संयमीया, तेरशत ओहिनांणि उपशमीया । केवलीशत सात वेउव्वी तेता, पांचशत विपुलमति मनवेता वादीशतच्यार सिद्धा शतसात, साहुणी शत चउद सिद्धि विख्यात । अणुंतरविमानें आठसें जाणुं, गई ठिइ कल्याण आगलि वखाणुं परिवार वीरनो जांणो ए संत, लख पांच सहस सत्तावीस हुंत । कर्या चोमासां प्रभु जे ठांम, कहुं हवें आगलि गांमनां नांम November-2015 अस्थिक एक चंपा पिठचंपा, थई त्रिण वर्षा रह्या अकंपा । वैशालि वाणिज्ज गांमिं थई बार, राजग्रहि चउद वर्षा निर्धार षट महिला भद्रिकादुग विवेक, एक आलंभिका सावत्थी एक । भूमिं एक ह्या प्रभू नांणी, आव्या अपापा अवसर जांणी हस्तपालनी रज्जुसभाई, अंतिम चोमासुं रह्या उच्छाहिं । सोलपोहोरनी देशनासार, प्रभुजीइं दीधी भवि उपगार तीसवरस प्रभु रह्या गृहवास, छद्मस्थ बारसाधिक उल्लास । तीस देसुण केवलीपर्याय, पाली प्रभु बिहोत्तेर वरसनुं आय कार्तिक अमांस दिवालि दिन्न, शैलेशीकरण करी अदिन्न । भवोपग्राहिक कर्म निवारी, मोक्ष पहुता वीर उपगारी संवत अट्ठरएकिं उल्लास, पोस वदि चोथिं पुगी मन आस । प्रीति धरीनें पूरण कीधो, राजनगर मां मनोरथ सीधो अनुभव रसमां जे रहें लाल, सुणी प्रभु वांणी थाइं खुशाल । एहवा उत्तम प्रांणीनें हेतें, कीद्धो सिलोको सूत्र संकेति For Private and Personal Use Only ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ 112011 ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ 112411 ॥२६॥ ॥२७॥ ॥२८॥
SR No.525304
Book TitleShrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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