________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
20
श्रुतसागर
इंद्रभूत्य' ग्निभूति' वायुभूति, व्यक्त सुधर्मामंडित सुभमति । मौर्यपुत्र निं अकंपीत अचलभ्राता, मेतार्य प्रभास प्रबल
९
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पांच पांचसे पाचनो परिवार, साढा त्रिण त्रिणसें दुगनो उदार । प्रत्येकें त्रिणसेंच्या (नो) जाणुं, शंशय तेहनो आगलि वखाणुं आम' कर्म शरीर तज्जीव', भूत जे जेहवो तेहवो सदीव । , पुन्य परलोक मोक्ष संदेह
६
११
८
१०
संदेही सर्व सर्वज्ञमांनी, वांदवा प्रभुनें आवें विमांनि । यज्ञप्रभावें आव्या सुर एह, चिंतवे एहवें सुर गया तेह द्विज दुख आणि मनमांहिं ताम, सर्वज्ञ बीजो सांभलें जांम । सर्वज्ञ बीजो मुझ थकां थाय, दुश्रवण श्रवणिं किम सोए सोहाय
गौड गुर्जनें मालव तिलिंग, लाटनां पंडित नाठा उंटसिंग । वा दुर्भिक्ष क्षय मुझ नाम, तो हवें एहनो फेडुं हुं ठांम
गाजें तहां खजुओ निं उडुराज, जिहां न पांमिं उदय दिनराज । खरज रसनानी उतारुं आज, इंम चिंति चाल्यो जिम युथराज इंद्रभूति तिहां देखी जगदेव, चिंति ब्रह्मा वा विष्णु माहादेव । चंद्रकलंकी सूर्यातप झाल, मेरु कठिन वा ब्रह्मा कुलाल हेमसिंहासन बिंठा जिनराज, सेवता नाकी देखी द्विजराज | किम रहिंसें माहारु जग जई नाम, चिंते हवें सारो शिव मुज्झ कां किम जाउं पासें बोलीस हवें केम, जाइ प्रभु पासें चिंतवतो इम । सुधासम वाणी वीरिं बोलाव्यो, गौतम! इंद्रभूति ! सुखिं आव्यो नाम छें माहरु त्रिजग विख्यात, जाणें न कोई एहवी सी वात । प्रकासें संशय मुझ मन केरो, तो हुं सर्वज्ञ जांणुं भलेरो
आतम संदेही वीर बोलावें, वेदपद अर्थि प्रतिबोध पावें । छिन्न संदेह पांचसें परिवार, गौतम लही दिक्षा हुओ जयकार अग्निभूति पणि सुणि वेगो आवें, वीर वचनथी प्रतिबोध पावें । समवसरणं द्विज इंम आव्या सर्व, विर वचनथी थया नीगर्व
For Private and Personal Use Only
नवम्बर २०१५
11311
11811
॥५॥
॥६॥
॥७॥
॥८॥
11811
॥१०॥
॥११॥
॥१२॥
॥१३॥
॥ १४॥
॥१५॥