Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
SHRUTSAGAR
प्रभुजी न बोल्या, पापि तहां रुठ, कानमां खीला घाल्या तिणिं दुठ । त्रिपृष्ट हरिना भवनुं जे कर्म, उदयें इहां आव्युं जांणो ए मर्म
19
खरक सिद्धारथ पहुता ते सर्ग, सह्या ए वीरे उपसर्ग - वर्ग । कर्म खपेवा तप कर्यो जेह, कहुं विगतिथी सुणों हवे तेह
मध्यम अपापा सिद्धारथ गेहे, आव्या तिहां दिठा सशल्य देहिं । आवेंतिणिं वनमां वैद्य वणिक, कांनथी खीला काढ्या तहकीक
बि दोढमासी मासी तप बार, बिहोत्तेर पासखमण उदार । भद्र माहाभद्र सर्वतोभद्र, प्रतिमा दिन दुग चउ दश करें भद्र
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पूरण छमासी तप एकवार, दिन पांचि न्युन बीजो हितकार । चमासी नवनिं तप बि त्रीमासी, बिं अढीमासीं छ वलि बिंमासी
दुगत गुणती छट्ठ प्रसिद्ध, अट्ठम बार जगगुरु कीध । पारणां त्रिणसें एगुणपंचास, कीधो तप निर्जल जगगुरु खास
बार वरसनें साढा छमास, छद्यस्थ वीचर्या वीर निरास । हवें प्रभु पामें केवलनांण, थिर चित्ते सुणयो तेह सुजांण
निरावरणी था, हणीओ मोह नरेश ।
गणधर संघ ने मोक्षवली, सुणो आगलि सुविसेस
November-2015
भिका गांम ऋजुवालिका तीर, सालरुख हेठलि ध्यानें वडवीर । प्रथम बें पाईया शुक्लध्यांन, वैशाख सुदि दशमें केवलज्ञांन
दोहरो
प्रणमी सर्वज्ञ मोक्षमंडाण, अधिकार चोथो कहुं सुजांण । केवल पांमी अपापा स्वामी, महसेन वनमां आव्या गुणधांमी
For Private and Personal Use Only
सोमिल सदनिं विप्र बहु मिलीया, तेहमां एकादश विद्याना बलिया । चरम शरिरी एकादश तेह, वीरनिं प्रणमी लहिंसिं दुख छेह
113811
॥३०॥
॥३१॥
॥३२॥
113311
113811
॥३७॥
इति श्री माहावीर पुरुषोत्तम स्तवनारुप लोकभाषया सिल्लोके श्री वीरविहार उपसर्ग केवलज्ञानोत्पति वर्णनो नांम तृत्तियोधिकार समाप्त ॥ ३॥
||३५||
॥३६॥
11811
॥२॥

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36