Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 22 अलिक एहमां भाख्यं होयें जेह, मिच्छामीदुक्कड (डं) होयो मुझ तेह | लघु दिर्घ अर्थ विपरीत, सोघयो सुद्धि जन धरि प्रीति तपगच्छनायक विजयप्रभसुरि, जास जस महिमा भूमंडल भूरि । तस सीस पुन्यविजय गुरुराजें, अंगे अनोपम ओपम छाजें श्री गुरु रंगविजयनो सीस, अमृत इंम दिई आसीस । संघ सकल थाओ कल्यांण, दिन दिन वाधो सुभ मंडाण ॥ दोहरो ॥ भव परमेष्टि जन्म व्रत, नांण मोक्ष ए पंच । कल्याणकिं करी संस्तव्यो, वीर दीओ सुखसंच धीर-धीरज वनिताइ = विनीतानगरी वसु-वश - आधीन आगिनाकारी=आज्ञाकारी रडिआलुं =रळी आमणुं विरतंत= वृत्तांत कज-कमल गो-किरण सहचर = मित्र सांसा= संशय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कठिन शब्दार्थ नवम्बर २०१५ ॥३२॥ इति श्री माहावीर पुरुषोत्तम स्तवनारुप लोकभाषया सिल्लोके गणधर स्थापन संघ चतुर्विध स्थापना श्री माहावीर मोक्ष कल्याणक वर्णनो नांम चतुर्था अधिकार संपूर्ण ॥४॥ सर्वगाथा १३१ छे श्रीरस्तु For Private and Personal Use Only धिखाणि= बुद्धिनिधान हरिवर = वासुदेव कोल्लाक= संनिवेस एहवें = एटलामां अथाह = अथाक छेक= कुशल प्रवलां= प्रवाल, परवाळा निं= अने वज्रीइं=इन्द्रे थोक = समूह ॥२९॥ 113011 ॥३१॥

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