Book Title: Shrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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पूछें भरत को स्वामी अवदात, भरत मध्यें कोई तुम सरिखो तात । चोवीसीमांहि तीर्थंकर थासें, पुरषदमांथी प्रभुजी प्रकासें
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पुत्र छिं ताहरो मरिचि अभिधांन, इह चोवीसीइं जिन वर्धमांन । मुका राजधांनी प्रीयमीत्र नांम, चक्रीसर थासें ते अभिराम
त्रिपृष्टनांमा इहज भरतें, हरिवर थासें तेह सुणंतिं । आवि मरिचि नई नमी कहें राय, लाभ जे मोटा तुज वसु थाय भाविजिन बांदि नगर संचरिओ, कुलमदस्युं तव मरिचि परवरियो । मदनां जोराथी नीचकुले भलीयो, अन्यदा कपिल तेहनें मिलयो ‘इत्थं इहयंपि’ वचन ओचरियो, सागर कोडाकोडि भव अनुसरियो । पूर्व चोरासी लख आयु पाली, बह्मलोकें दश सागर, शालि
नवम्बर २०१५
असितिलखपूर्व कोल्लाक विप्र, पुष्फलख बिहोतेर पूर्व्वायुविप्र । पालि, सौधर्मे देव ते थाय, आगलि सुणयो जेह कहिंवाय
षष्टिलख पूरव अग्निद्योत नाम, इशांते सूर ते हुओ शुभ ठांम । मंदर सन्निवेश पंचावन लाख, पूव्वार्यु अग्निभूत ब्राह्मण भाख चीजें कल्पें सुर, चिउंआलीसलक्ष, आयु भारद्वाज विप्र सुदक्ष । र महेंद्र देवता थाय, केतलोकाल विचमांहिं जाय
राजग्रहि नगरि लाख चोत्रीस, पुरव आयु थावर जगीस । त्रिदंडी वेश सातभव सेव, ब्रह्मदेवलोकें मध्यस्थिति देव कोटिवर्षायु विश्वभूतिनाथ, युवराज पुत्र थयो ते जांम । संभूतमुनि पासें चारित्र, वरसहजार तपसु पवित्र बहु बल होयो एहवुं नीआंण, करी सातमें सुरलोक ठाण । सत्तरमई भवें देवता हुओ, हवें जे आगलि थायें ते जूओ तिहांथी मरिनें हरिवर थाय, त्रिपृष्ट नांमा जे जग गाय । पाप बहुलां तिणिं भवे कीध, सातमी नरके अवतार लीध चवी नरकथी वनमृगराय, नरकिं वली चौथी बहुभव थाय । मानवभव चोरासीलाख आय, प्रीयमीत्रनांमा चक्रीसर थाय
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